मालवी के प्रश्न और आदि श्री का जबाब

 मालवी  : आदि श्री के चरणों में मेरा प्रणाम स्वीकार हो। आदि श्री जी, मैं भगवन को पाना चाहती  हूँ इसके लिए मैं किस धर्म को अपनाऊँ ? मुझे गुस्सा भी बहुत आती  है। मैं चाहती हूँ कि गुस्सा न करूँ  परन्तु उस पर  मेरा कोई नियंत्रण नहीं रहता है।  मैं कुछ भी करती   हूँ लेकिन मुझे ख़ुशी नहीं मिलती है।  क्या मेरी इन समस्याओं का कोई हल है ? आदि श्री जी मुझे मार्गदर्शन कीजिए। 

आदि श्री अरुण : भगवान का कोई धर्म नहीं है। इसलिए किस धर्म को अपनाऊँ ऐसा सोचो भी मत। तुम जिस  धर्म को मानती हो उसी धर्म को मानती रहो।  प्रेम संसार रूपी पेड़ का जड़ है जो संसार को जीवित रखता है। इसलिए तुम अपने अन्दर प्रेम गुण  को विकसित करो क्योंकि प्रेम ही परमेश्वर है । भगवान ने  तुमसे कैसा प्रेम किया कि  तुम भगवान  की  पुत्री कहलाई।  ठीक उसी तरह तुम एक   दूसरों  से प्रेम करो। जब तुम्हारे अन्दर प्रेम गुण उपजेगा तब गुस्सा अपने आप ख़त्म हो जाएगा। संसार रूपी जिस पेड़   को तुम देखती हो या  फिर संसार रूपी जिस पेड़ की हम कल्पना करते हैं उसमें  नम्रता संसार रूपी पेड़ का तना  है जो संसार को सीधा खड़ा रहने में मदद करता है। इसलिए तुम नम्र  बनो। तुमको ख़ुशी तब मिलेगी जब तुम्हारी चाहत परोपकार  करने की होगी। मैं  ऐसे  धर्म  को  मानता  हूँ  जो  प्रेम, दया, और परोपकार सिखाए। तुमको भी ऐसे ही धर्म को मानना चाहिए। दुनिया में किसी भी व्यक्ति को भ्रम में नहीं रहना चाहिए। बिना गुरु के कोई भी व्यक्ति दुसरे किनारे तक नहीं जा सकता है। इसलिए तुम एथोराइज गुरु के शरण में जाओ और सूरत शब्द योग सिख कर उसका अभ्यास करो तो तुम भगवान को  पा लोगी। असफलता तभी आती है जब तुम अपने आदर्श, उद्देश्य, और सिद्धांत को भूल  जाती  हो। मेरे लिए दरवाजे खोलो, जैसे मैंने  तुम्हारे लिए दरवाजा खोला है। गलतियां हमेशा क्षमा की जा सकती हैं, लेकिन केवल उनकी गलतियां  क्षमा की जाती  है  जिन्हें गलतियाँ स्वीकार करने का साहस हो। शिक्षा सबसे अच्छा  मित्र है। शिक्षा सौंदर्य और यौवन दोनों को परास्त कर देती है। मेरे खड़े लब्ज सुनकर क्रोधित मत हो क्योंकि  क्रोध से  भ्रम  पैदा होता है,  भ्रम से बुद्धि व्यग्र होती है, जब बुद्धि व्यग्र होती है तब तर्क नष्ट हो जाता है, जब तर्क नष्ट होता है तब व्यक्ति का पतन हो जाता है  । जो मन को नियंत्रित नहीं करते उनके लिए वही  मन  शत्रु के समान कार्य करता है। बहुत सारे लोग तुम्हारे  साथ शानदार गाड़ियों में घूमना चाहते हैं, पर क्या तुम चाहती  हो कि कोई ऐसा व्यक्ति हो जो गाड़ी खराब हो जाने पर तुम्हारे  साथ बस में जाने को तैयार रहे ? इन्सान को यह देखना चाहिए कि  क्या है, यह नहीं देखना चाहिए कि उसके अनुसार क्या होना चाहिए ।  इस बात को व्यक्त मत होने दो  कि परमेश्वर  को पाने के लिए तुमने  क्या  सोचा है ? बुद्धिमानी से इसे रहस्य बनाये रखो  और इस काम को करने के लिए दृढ रहो  । ख़ुशी तब मिलेगी जब तुम "जो सोचती  हो, जो कहती  हो और जो करती  हो" उसमें  सामंजस्य बना रहे ।  हार मत मानो क्योंकि हमेशा अगला मौका ज़रूर आता है। 

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