काल एक निश्चित समय को कहते हैं। वह निश्चित समय पूरा होते ही वहाँ का सब कुछ समाप्त हो जाता है। काल देश में रचना का आधार है प्रकृति। प्रकृति ही सम्पूर्ण जगत को रचती है और प्रकृति ही सम्पूर्ण जगत का नाश करती है। गीता १४:३ में परमेश्वर ने कहा की मेरी महत् - ब्रह्म मूल - प्रकृति सम्पूर्ण भूतों (सृष्टयों) की योनि है अर्थात गर्भाधान का स्थान है और मैं उस योनि में चेतन समुदायरूप गर्भ को स्थापन करता हूँ। उस जड़ - चेतन के संयोग से सब भूतों (सृष्टयों) की उत्पत्ति होती है। भू, भुवः, स्वः (पृथ्वी, अंतरिक्ष और स्वर्ग) अर्थात पृथ्वी से लेकर ध्रुव लोक तक काल निर्मित देश है जो नाशवान है। इसलिए इस तीनों लोकों में से किसी भी लोक में मनुष्य रहे तो उसका नाश निशित ही है। स्वर्ग लोक से ऊपर केवल एक ही लोक महर्लोक है जो कल्प के अंत में जन-शून्य हो जाता है। यह पृथ्वी से १ करोड़ १५ लाख योजन दूर है। (१ करोड़ = १२ किलो मीटर) महर्लोक से २ करोड़ योजन ऊपर अविनाशी लोक है जो ८८ करोड़ २५ लाख योजन में फैला हुआ है और अविनाशी लोक से १०० करोड़ योजन उपर अनामी अर्थात वास्तविक गोलोक धाम है ; इसको निम्नवत चार्ट के द्वारा समझा जा सकता है :-
१. (अनामी) - GOD SELF परमेश्वर के रहने का स्थान
[1 योजन = १२ किलो मीटर]
१. (अनामी) - GOD SELF परमेश्वर के रहने का स्थान
१०० करोड़ योजन
२. (अगम) - २ से ४ तक सच्च खंड है जो अविनाशी लोक है
५० करोड़ योजन
३. (अलख) - अविनाशी लोक
१८ करोड़ २५ लाख योजन
४. (सत लोक) - अविनाशी लोक
१२ करोड़ योजन
५. (तपो लोक) - अविनाशी लोक
८ करोड़ योजन
६. (जन लोक) - अविनाशी लोक
२ करोड़ योजन
७. (महर्लोक) - कल्प के अंत में जन-शून्य हो जाता है
१ करोड़ योजन
८.(ध्रुव लोक) - ८ से १७ तक १४ लाख योजन स्वर्ग लोक ( स्वः) है जो नाशवान लोक है
१ लाख योजन
९. (सप्तऋषि मंडल)
१ लाख योजन
१०. (शनि )
२ लाख योजन
११. (बृहस्पति)
२ लाख योजन
१२. (मंगल)
२ लाख योजन
१३. (शुक्र)
२ लाख योजन
१४. (बुध)
२ लाख योजन
१५. (सम्पूर्ण नक्षत्र मंडल)
१ लाख योजन
१६. (चन्द्र मंडल)
१ लाख योजन
१७. (सूर्य मंडल)
१ लाख योजन - भुवर्लोक (भूवः)
१८. (पृथ्वी) - भू:
यह जानकारी आपको सचेत करता (एलर्ट) है कि "काल निर्मित देश में हमेशा जीवित रहना संभव नहीं है। जो मनुष्य मरना नहीं चाहते हैं उनको शरीर में रहते - रहते ही अविनाशी लोक में जाने के लिए परिश्रम करना चाहिए। केवल मनुष्य योनि में ही अविनाशी लोक में जाने के लिए परिश्रम करना संभव है। मनुष्य योनि को छोड़ कर अन्य किसी भी योनियों में यह अवसर नहीं मिलता है।"