परमेश्वर ने सारी रचना को रचने के बाद सबसे अंत में मनुष्य को बनाया और उनसे कहा सुनो -
जितने बीज वाले छोटे - छोटे पेड़ सारी पृथ्वी के ऊपर हैं और जितने वृक्षों में बीज वाले फल होते हैं उन सबको तुमको भोजन के लिए दिए हैं। (धर्मशास्त्र, उत्पत्ति १ :२९) इस प्रकार परमेश्वर के कहने पर मनुष्य शाकाहारी भोजन करने लगा।
कुछ समय बीतने के बाद परमेश्वर ने क्या देखा कि सभी मनुष्यों ने अपना - अपना चाल चलन बिगार लिया है।मनुष्य की बुराई पृथ्वी पर बढ़ गई है और उनके मन के विचार में जो कुछ उतपन्न होते हैं वह निरंतर ही बुरा होता है। तब परमेश्वर ने पृथ्वी पर मनुष्य को बनाने पछताया और उन्होंने फैसला किया कि मनुष्य को जिसकी मैंने सृष्टि की है पृथ्वी के ऊपर से मैं मिटा दूंगा। क्या मनुष्य, क्या पशु, क्या रेंगने वाले जंतु, क्या आकाश के पक्षी सबको मैं मिटा दूंगा। (धर्मशास्त्र, उत्पत्ति ६:५-७) तब परमेश्वर ने पृथ्वी पर विनाशकारी जल प्रलय लाया।
परमेश्वर की योजना में ४० दिन और ४० रात विनाशकारी जल प्रलय होता रहा। (धर्मशास्त्र, उत्पत्ति ७:१७) परमेश्वर की नजर में नूह धर्मी और खरा पुरुष था। (धर्मशास्त्र, उत्पत्ति ६:९) इसलिए परमेश्वर ने नूह को जहाज में बैठाया और उसके साथ नूह की पत्नी, नूह के पुत्र और तीन बहुओं समेत सब जाति के पशु, पक्षी, रेंगने वाली जंतु में से दो - दो अर्थात एक नर और एक मादा, सब जाति के शुद्ध पशुओं में से सात - सात अर्थात सात नर और सात मादा और जो शुद्ध नहीं हैं उनमें से दो नर और दो मादा तथा जितने प्राणी नूह के संघ थे उसको बैठाया और उन सबको बचा लिए। (धर्मशास्त्र, उत्पत्ति ६:१९ -२२; ७:१-३ और ९:१२) इस प्रकार विनाशकारी जल प्रलय में जहाज / नाव के द्वारा वचने वाले लोगों की कुल संख्या ८८००० थी ।
(भविष्य पुराण, प्रति सर्ग पर्व, प्रथम खंड, अध्याय ४-५)
जब जल प्रलय ख़त्म हुआ तब पृथ्वी पर खाने के लिए कुछ भी नहीं था। जल प्रलय में सब पेड़ - पौधे जल में डूब कर नष्ट हो चुके थे। मनुष्य के लिए भोजन सबसे बरी समस्या बन गई और भोजन के बिना सब मर जाते। तब परमेश्वर ने कहा - सब चलने वाले जंतु तुम्हारा आहार होंगे। जिस प्रकार तुमको खाने के लिए मैंने हरे - हरे छोटे पेड़ दिए थे वैसे ही खाने के लिए अब मैं तुझको सब चलने वाले जंतु आहार के लिए देता हूँ। (धर्मशास्त्र, उत्पत्ति ९:३-४) परमेश्वर के कहने पर जल प्रलय के बाद मनुष्य मंसाहारी भोजन करने लगे।
इस प्रकार परमेश्वर के कहने पर ही मनुष्य शाकाहारी भोजन करने लगे और परमेश्वर के ही कहने पर मनुष्य मंसाहारी भोजन करने लगे।
परमेश्वर की योजना में ४० दिन और ४० रात विनाशकारी जल प्रलय होता रहा। (धर्मशास्त्र, उत्पत्ति ७:१७) परमेश्वर की नजर में नूह धर्मी और खरा पुरुष था। (धर्मशास्त्र, उत्पत्ति ६:९) इसलिए परमेश्वर ने नूह को जहाज में बैठाया और उसके साथ नूह की पत्नी, नूह के पुत्र और तीन बहुओं समेत सब जाति के पशु, पक्षी, रेंगने वाली जंतु में से दो - दो अर्थात एक नर और एक मादा, सब जाति के शुद्ध पशुओं में से सात - सात अर्थात सात नर और सात मादा और जो शुद्ध नहीं हैं उनमें से दो नर और दो मादा तथा जितने प्राणी नूह के संघ थे उसको बैठाया और उन सबको बचा लिए। (धर्मशास्त्र, उत्पत्ति ६:१९ -२२; ७:१-३ और ९:१२) इस प्रकार विनाशकारी जल प्रलय में जहाज / नाव के द्वारा वचने वाले लोगों की कुल संख्या ८८००० थी ।
(भविष्य पुराण, प्रति सर्ग पर्व, प्रथम खंड, अध्याय ४-५)
जब जल प्रलय ख़त्म हुआ तब पृथ्वी पर खाने के लिए कुछ भी नहीं था। जल प्रलय में सब पेड़ - पौधे जल में डूब कर नष्ट हो चुके थे। मनुष्य के लिए भोजन सबसे बरी समस्या बन गई और भोजन के बिना सब मर जाते। तब परमेश्वर ने कहा - सब चलने वाले जंतु तुम्हारा आहार होंगे। जिस प्रकार तुमको खाने के लिए मैंने हरे - हरे छोटे पेड़ दिए थे वैसे ही खाने के लिए अब मैं तुझको सब चलने वाले जंतु आहार के लिए देता हूँ। (धर्मशास्त्र, उत्पत्ति ९:३-४) परमेश्वर के कहने पर जल प्रलय के बाद मनुष्य मंसाहारी भोजन करने लगे।
इस प्रकार परमेश्वर के कहने पर ही मनुष्य शाकाहारी भोजन करने लगे और परमेश्वर के ही कहने पर मनुष्य मंसाहारी भोजन करने लगे।