परमेश्वर का स्मरण या नाम जप क्यों करें ?


कलियुग अर्थात कलि (सैतान) के शासन काल में परमेश्वर का स्मरण या परमेश्वर के नाम का जप या परमेश्वर के नाम का संकीर्तन  ही भव सागर से पार जाने एक मात्र सरल उपाय है। जो फल सत्य युग में ध्यान करने से, त्रेता युग में बड़े - बड़े यज्ञ करने से और द्वापर युग में विधि पूर्वक पूजा करने प्राप्त होता है वही  फल  कलियुग में केवल  परमेश्वर के नाम का जप या  परमेश्वर के नाम का संकीर्तन या परमेश्वर का स्मरण करने से प्राप्त होता है। यूं तो चारों युगों में परमेश्वर के नाम का प्रभाव है किन्तु कलियुग  में परमेश्वर के नाम का विशेष प्रभाव है। सभी धर्मग्रंथों में इस बात का वर्णन किया गया है। जिस प्रकार आग के बिना दीपक नहीं जलाया जा सकता ठीक उसी प्रकार  परमेश्वर का स्मरण या परमेश्वर के नाम का जप या  परमेश्वर के नाम का संकीर्तन किए बिना इस कलियुग में  भव सागर से पार नहीं किया जा सकता है। परमेश्वर का नाम ही  इस कलियुग में  भव सागर से पार जाने के लिए सुदृढ़  जहाज है।
परमेश्वर को  स्मरण करने से माया की प्यास बुझ जाती है, यम का भय समाप्त हो जाता है और जीवन की आशा पूर्ण हो जाती है । परमेश्वर को  स्मरण करने से मन का मैल दूर होजाता है, आत्मा तीर्थ का स्नान करने वाला बन जाता है, मन रूपी आसन कभी नहीं डोलता और वह मनुष्य कभी भी चिन्ता के गिरफ़्त में नहीं आता। परमेश्वर का आश्रय लेने से जीव का जन्म - मरण छूट जाता है, परमेश्वर का शरणागत होने से सारे दुःख, रोग और संकट नष्ट हो जाते हैं,  परमेश्वर का नाम  लेने से जीवन में आये संकट रूपी भयानक जलन खत्म हो जाती है और गर्मी पर छाया बन कर जीव को शीतलता प्रदान करती है।
परमेश्वर का  नाम मनुष्यों के लिए व्यवहारिक सामग्री है, उसकी आवश्यकता  मनुष्यों को हर वक्त होती है। जब परमेश्वर के नाम की वर्षा होती है तो वह जीवन में उपस्थित संकट व् समस्या रूपी जलन को बुझा देती है। मनुष्यों के लिए परमेश्वर का  नाम ही छुटकारे का साधन है,  परमेश्वर का  नाम ही मनुष्य का सौंदर्य है। हर स्वांस में परमेश्वर के नाम  उच्चरित करना वह गहना है जो मनुष्य की सुंदरता में चार चाँद लगा देता है। मैं तो स्त्रियों से भी यही कहना चाहूँगा कि यदि आप सच मुच सुंदर दिखना दिखना चाहती हैं तो सुंदरता को निखारने के लिए गहना - जेवर न पहनें, पाउडर, क्रीम और फेसियल का सहारा न लें बल्कि उसके जगह परमेश्वर के नाम का जप करें जो शरीर के अंदर और बाहर दोनों को सुन्दरता प्रदान करता है । इस प्रकार से  सुन्दरता को निखारने के लिए रूपये खर्च नहीं करने पड़ते हैं ।
परमेश्वर के नाम की महिमा अनंत है। जिस प्रकार स्वामी के पीछे - पीछे सेवक चलता है ठीक उसी प्रकार नाम के पीछे - पीछे नामी (परमेश्वर) चलता है। कलियुग में परमेश्वर का नाम कल्प वृक्ष है जो स्मरण करते ही सब जंजालों को नाश कर देने वाला है, मनुष्य को मनवांछित फल देने वाला है, यह परलोक का हितैसी और इस लोक का माता - पिता है । कलियुग में न कर्म है, न भक्ति है, और न ज्ञान ही है । कलियुग में तो केवल परमेश्वर का नाम ही एक मात्र आधार है। ध्रुव ने हरि  का नाम जपा तो उसके प्रभाव से उसको ध्रुव लोक की प्राप्ति हो गई।  हनुमान जी ने नाम जप करके श्रीराम जी को अपने वश  में कर रखा है। नीच अजामिल, गज और गणिका (वेश्या ) भी हरि  के नाम के प्रभाव से मुक्ति पा गए। श्री राम जी ने केवल सुग्रीव और विभीषण को ही अपने शरण में रखा लेकिन नाम ने तो असंख्य मनुष्यों को  तार  दिया । प्रभु श्री राम ने तो शबरी, जटायु इत्यादि उत्तम सेवकों को ही मुक्ति दी लेकिन नाम ने तो अनगिनत दुष्टों का उद्धार किया। प्रभु  राम ने तो भयानक दण्डक वन को ही सुहावना बनाया परन्तु नाम ने तो असंख्य मनुष्यों के मन को पवित्र कर दिया  । ब्रह्म के दो रूप हैं - सगुन और निर्गुण लेकिन नाम इन दोनों से बड़ा है। कलियुग में  परमेश्वर का नाम ही मनचाहा पदार्थ देने वाला है  और यह मुक्ति का घर है।
अब आप स्वयं विचार कीजिये कि परमेश्वर का स्मरण या नाम जप क्यों करें ?

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