Kyaa Hai Brahm Muhurt ? क्या है ब्रह्म मुहूर्त ?

क्या है ब्रह्म मुहूर्त ? 


(आदिश्री अरुण )



ब्रह्म मुहूर्त रा‍त्रि का चौथा प्रहर होता है। सूर्योदय के पूर्व के प्रहर में दो मुहूर्त होते हैं। उनमें से पहले मुहूर्त को ब्रह्म मुहूर्त कहते हैं। उसके बाद वाला मुहूर्त  विष्णु का समय है जबकि उस समय सुबह में  सूर्य दिखाई नहीं देता। हमारी घड़ी के अनुसार वह समय  प्रात: 4:24 से 5:12 बजे का समय ब्रह्म मुहूर्त है।

सुबह के 4:24 बजे से  5:12 बजे के बीच का समय ब्रह्म मुहूर्त का समय कहलाता है । ऋग्वेद तथा ऋषि मुनियों ने ब्रह्म मुहूर्त को प्रकृति का एक विशेष वरदान कहा है ।

ऐसे समय में की गई देव उपासना, ध्यान, योग और पूजा से तन, मन और बुद्धि पवित्र होती है।  शास्त्रों में इस समय सोना निषिद्ध है।

इसलिए कहा भी गया है कि -
“ब्रह्ममुहूर्ते या निद्रा सा पुण्यक्षयकारिणी”
अर्थ - ब्रह्ममुहूर्त की निद्रा पुण्य का नाश करने वाली होती है।

ऋषि मुनियों ने ब्रह्म मुहूर्त को विशेष महत्व दिया है । उनके अनुसार यह समय निद्रा त्यागने के लिए सर्वोत्तम है । ब्रह्म मुहूर्त में सोना शास्त्र के अनुसार वर्जित है। ब्रह्म मुहूर्त में सोने से पुण्य का नाश हो जाता है । ऋषि मुनियों के द्वारा ब्रह्म मुहूर्त का समय  प्रात: 4:00 से 5:30 तक निर्धारित किया गया है ।

ब्रह्म मुहूर्त के सम्बन्ध में आदिश्री अरुण का मत : 

आदिश्री अरुण के  मत के अनुसार साढ़े तीन बजे अथवा 3.40 पर सूर्य उस जगह पहुंच जाता है, जहां उसका सीधा संबंध पृथ्वी से हो जाता है । उस समय उसकी किरणें ठीक आपके सिर के ऊपर होती हैं। जब सूर्य की किरणें धरती के दोनों तरफ एक ही जगह पड़ती हैं, तो इंसान के शरीर का सिस्टम एक खास तरीके से काम करने लगता है और तब एक संभावना बनती है । इस संभावना के इस्तेमाल करने को लेकर लोगों में जागरूकता रही है।

अगर आपके सिस्टम में एक जीवंत बीज पड़ चुका है और अगर आप ब्रह्म मुहूर्त में जागकर कोई भी अभ्यास करने बैठते हैं तो यह बीज आपको सबसे ज्यादा फल देगा या यूँ कहिये कि आपके भीतर पड़ा वह बीज दूसरे समय की अपेक्षा ब्रह्ममुहूर्त के समय में ज्यादा तेजी से फूटेगा । उसकी वजह यह है कि इस समय धरती आपके सिस्टम के अनुसार काम करती है । इस समय में मानव शरीर में मौजूद दो प्रमुख नाडिय़ों - इड़ा और पिंगला के बीच एक खास तरह का संतुलन कायम होता है।

वैसे तो सूर्य हमेशा आपके सिर के ऊपर ही होता है, लेकिन जब मैं कहता हूं कि सूर्य ठीक आपके सिर पर है तो इसका मतलब यह  है कि उस समय वह आपके सिर पर लंबवत है । उस समय यह एक विशेष तरीके से काम करता है । यह समय होता है 3:40 से लेकर अगले 12 से 20 मिनट तक।

सूर्य ठीक आपके सिर पर है तो इसका मतलब यह है कि उस समय वह आपके सिर पर लंबवत है। उस समय उसका प्रभाव एक विशेष तरीके से आपके शरीर में काम करता है। यह समय होता है 3:40 से लेकर अगले 12 से 20 मिनट तक ।

 ब्रह्म मुहूर्त कई दृष्टिकोणों से बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है ।

आदिश्री के मत के अनुसार कैसे करती है पृथ्वी 11 डिग्री पर  साधना में मदद :

पृथ्वी का घुमाव पृथ्वी पर एक खास बल पैदा करता है। यह बल सभी वस्तुओं पर पृथ्वी की सतह से बाहर की ओर लगता है। इसके कारण इस ग्रह पर कुछ स्थान आपकी ऊर्जा को ऊपर की ओर ले जाने में मददगार होते हैं ।

अपकेन्द्री बल खून और ऊर्जा को ऊपर की ओर ले जाएगा। अगर आप पृथ्वी पर 0 से 33 डिग्री के बीच खड़े हैं, तो आपकी ऊर्जा ऊपर की तरफ जाएगी । 11 डिग्री पर ऐसा सबसे ज्यादा होगा ।

आदिश्री के मत के अनुसार क्या है प्रथ्वी के 33 डिग्री का महत्व:

योग परंपरा में भूमध्य रेखा के उत्तर और दक्षिण में 33 डिग्री तक के स्थान को पवित्र माना जाता है । इसके दक्षिण में अधिक भूमि नहीं है, इसलिए मुख्य रूप से हम उत्तरी गोलार्ध पर ध्यान केंद्रित करते हैं । भूमध्य रेखा से 11 डिग्री का स्थान सबसे अधिक महत्वपूर्ण है । जैसे-जैसे आप इससे दूर जाते हैं, यह पवित्रता घटती जाती है । इसलिए पुराने जमाने के लोगों ने गणना करके पृथ्वी पर ऐसी जगहों की पहचान की, जहां लोगों को साधना में पृथ्वी से मदद मिल सकती है ।

यह पवित्रता इसलिए है क्योंकि पृथ्वी घड़ी की उलटी दिशा में घूमती है । जो भी चीज घूमती है, वह एक खास बल पैदा करती है, जिसे अपकेन्द्री बल या फिर सेंट्रीफ्यूगल फोर्स  कहते हैं । घूमने के कारण पृथ्वी यह बल उत्पन्न करती है, जो 11 डिग्री पर सबसे अधिक और 33 डिग्री तक अच्छी स्थिति में होता है ।

इस बल का महत्व यह है, कि इसके कारण पृथ्वी की सभी चीज़ें बाहर की ओर जाने की कोशिश कर रही हैं । पृथ्वी पर बैठने या खड़े होने पर अपकेन्द्री बल आपके ऊपर एक खास तरीके से काम करता है । यह बल 0 से 33 डिग्री तक आपके शरीर में पैरों से सर की तरफ काम करता है। खास कर 11 डिग्री पर यह बल आपके भीतर 100 फीसदी सर की तरफ होता है । यानी अगर हम आपको पैरों से उठा कर गोल-गोल घुमाएं, तो आप अपने सिर में खून का तेज प्रवाह महसूस करेंगे । क्योंकि अपकेन्द्री बल खून और ऊर्जा को ऊपर की ओर ले जाएगा। अगर आप पृथ्वी पर 0 से 33 डिग्री के बीच खड़े हैं, तो आपकी ऊर्जा ऊपर की तरफ जाएगी ।  11 डिग्री पर ऐसा सबसे ज्यादा होगा । 

जो व्यक्ति अपनी ऊर्जा को उसकी अधिकतम सीमा तक ऊपर उठाना चाहता है, वह इस स्थिति से बहुत लाभ उठा सकता है । इसलिए यह समय ध्यान करने के लिए बहुत उपयोगी है । 

जो व्यक्ति अपनी ऊर्जा को उसकी अधिकतम सीमा तक ऊपर उठाना चाहता है, वह इस स्थिति से बहुत लाभ उठा सकता है । 
पृथ्वी की गति के कारण 11 डिग्री पर अपकेन्द्री बल ठीक आपके पैरों से सर की तरफ लगेगा। इस बल के कारण आपकी ऊर्जा सीधे ऊपर की ओर जाएगी । अगर आप सिर्फ अपना सिर सीधा रख कर बैठें, तो इस स्थान पर खुद-ब-खुद आपकी ऊर्जा ऊपर उठेगी । अगर आप थोड़ी साधना करें, तो यह और भी आसान होगा ।


ब्रह्म मुहूर्त का महत्व:


ब्रह्म मुहूर्त का धार्मिक महत्व:

मान्यता है कि इस वक्त जागकर भगवान की पूजा, ध्यान और पवित्र कर्म करना बहुत शुभ होता है । ऐसा करने से ज्ञान, विवेक, शांति, ताजगी, निरोग और सुंदर शरीर, सुख और ऊर्जा मिलती है । प्रमुख मंदिरों के पट भी ब्रह्म मुहूर्त में खोल दिए जाते हैं तथा भगवान का श्रृंगार व पूजन भी ब्रह्म-मुहूर्त में किए जाने का विधान है । वाल्मीकि रामायण के मुताबिक माता सीता को ढूंढते हुए श्री हनुमान ब्रह्ममुहूर्त में ही अशोक वाटिका पहुंचे जहां उन्होंने वेद व यज्ञ के ज्ञाताओं के मंत्र उच्चारण की आवाज सुनी । 


आयुर्वेद के अनुसार  ब्रह्म मुहूर्त में उठने का दो कारण बताया गया है - (1 )  ब्रह्म मुहूर्त में उठ कर टहलने से शरीर में संजीवनी शक्ति का संचार होता है । यही कारण है कि इस समय बहने वाली हवा को अमृत तुल्य कहा गया है ।  (2 ) ब्रह्ममुहूर्त में उठने वाला पुरूष सौन्दर्य, लक्ष्मी, स्वास्थ्य, आयु आदि वस्तुओं को वैसे ही प्राप्त करता है जैसे कमल । 

वैज्ञानिक शोधों के अनुसार यह कहा गया है कि ब्रह्म मुहूर्त में वातावरण में ऑक्सीजन का स्तर अधिकतम रहता है । इस समय वायु प्रदूषण रहित होती है । इस समय किया गया व्यायाम शरीर को अधिकतम शुद्ध ऑक्सीजन पहुंचाता है और हमारे फेफड़ों की शक्ति बढ़ाकर रक्त को शुद्ध करता है। इसका असर हमारे संपूर्ण स्वास्थ्य पर दिखाई देता है ।

वैज्ञानिक शोध यह भी बताते हैं कि ब्रह्म मुहूर्त के समय  वायुमंडल में प्राणवायु (प्राणिक ऊर्जा) का सबसे अधिकतम मात्रा में संचार होता है अर्थात उस समय वायु मंडल में ऑक्सीजन (प्राण वायु) की % मात्रा 41 प्रतिशत होती है, जो फेफड़ों की शुद्धि के लिए महत्वपूर्ण होती है । शुद्ध वायु मिलने से मन, मस्तिष्क भी स्वस्थ रहता है । इस समय ली गई सांस से उम्र बढ़ती है और बीमारियां दूर होती हैं ।

आयुर्वेदिक महत्त्व - 

आयुर्वेद के अनुसार ब्रह्म-मुहूर्त में उठकर टहलने से शरीर में संजीवनी शक्ति बढ़ती है । यही कारण है कि इस समय बहने वाली हवा को अमृत के बराबर माना गया है । इसके अलावा यह समय पढ़ाई के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण माना गया है क्योंकि रात को आराम करने के बाद सुबह जब हम उठते हैं तो शरीर तथा मस्तिष्क में भी स्फूर्ति व ताजगी बनी रहती है ।

ब्रह्म मुहूर्त एक मुहूर्त ऐसा होता है जिसे भक्ति, ध्यान और अध्ययन के लिहाज से बहुत शुभ माना जाता है । ऐसी  मान्यता है कि यह देवताओं के भ्रमण का समय होता है। जिसके दौरान वायु में अमृत की धार बहती है। इस समय के दौरान बाहर भीतर एक असीम शांति रहती है ।

ऋग्वेद में कहा गया है कि ब्रह्म मुहूर्त अच्छा स्वास्थ्य और दीर्घ आयु प्राप्त करने के लिए प्रकृति का एक वरदान है ।

ब्रह्म मुहूर्त में उठने पर सहस्रार से प्रति दिन एक बून्द अमृत तत्व निकलता है, लेकिन इसका पूर्ण लाभ उठाने के लिए मनुष्य के विशुद्ध चक्र  का जागृत होना आवश्यक है। मनुष्य का विशुद्ध चक्र तब जागृत होगा जब वह ध्यान करे । इसलिए  ब्रह्म मुहूर्त में ध्यान करना प्रत्येक मनुष्य के लिए अत्यंत ही लाभदायक है । ध्यान करने वाले को यह अमृत तत्व कुदरती रूप से नाभि में जमा होने लगता है; फिर उसका कई प्रकार से संचार करना या उपयोग करना मनुष्य के लिए संभव हो जाता है । 

विशुद्धि चक्र:

विशुद्धि चक्र शरीर के सात चक्तों में पांचवां चक्र है। इसे गला चक्र भी कहते हैं। यह ग्रेव नलिका के पास (गले के ठीक पीछे) स्थित होता है और इससे श्वास नली, आवाज, कंधे जुड़े होते हैं। स्वर ग्रंथि से यह सीधे जुड़ा होता है इसलिए सबसे ज्यादा इससे नासिका और स्वर ही प्रभावित होते हैं। 

कंठ केन्द्र
विष = जहर, अशुद्धता

शुद्धि = अवशिष्ट निकालना

विशुद्धि चक्र कंठ में स्थित है। इसका मंत्र हम है। विशुद्धि का रंग बैंगनी है। इस चक्र में हमारी चेतना पांचवें स्तर पर पहुंच जाती है। इसका समानरूप तत्त्व आकाश (अंतरिक्ष) है। हम इसका अनुवाद 'ईश्वर' (लोकोत्तर) भी कर सकते हैं, इसका अभिप्राय यह है कि यह स्थान ऊर्जा से भरा रहना चाहिए। विशुद्धि चक्र उदान प्राण का प्रारंभिक बिन्दु है। श्वसन के समय शरीर के विषैले पदार्थों को शुद्ध करना इस प्राण की प्रक्रिया है। इस मुख्य कार्य के कारण ही इस चक्र का नाम व्युत्पन्न है। शुद्धिकरण न केवल शारीरिक स्तर पर ही होता है अपितु मनोभाव और मन के स्तर पर भी होता है। जीवन में हमने जिन समस्याओं और दुखद अनुभवों को 'निगल लिया' और भीतर दबा लिया, वे तब तक हमारे अवचेतन मन में बने रहते हैं, जब तक कि हम उनका सामना नहीं करते और बुद्धि से उनका समाधान नहीं कर देते।

विशुद्धि चक्र प्रसन्नता की अनगिनत भावनाओं और स्वतंत्रता को दर्शाता है जो हमारी योग्यता और कुशलता को प्रफुल्लित करता है। विकास के इस स्तर के साथ, एक स्पष्ट वाणी, गायन और भाषण की प्रतिभा के साथ-साथ एक संतुलित और शांत विचार भी होते हैं।

अगर इस चक्र में व्याधि आए:

अत: अगर विशुद्धि चक्र में व्याधि आए या यह अवरुद्ध हो जाए तो शरीर के इन हिस्सों से संबंधित परेशानियां उत्पन्न हो सकती हैं; मसलन बोलने में परेशानी, कंधे में दर्द, अस्थमा की परेशानियां या श्वास संबंधित परेशानियां आदि। 

विशुध्द चक्र मुख्य रूप से मुँह, दाँत, जबड़े, गला, गर्दन, भोजन नलिका, थायरॉइड ग्रंथी और रीढ़ की हड्डी के कार्यों को नियंत्रित करता है ।

ऐसा मन जाता है कि पीड़ादायक गला, कान में इन्फेक्शन, पीठ तथा गर्दन में दर्द, थायरॉईड के विकार और दाँत तथा मसूढ़ों की तकलीफें यह इस चक्र की वजह से आनेवाली कुछ शारीरिक समस्याएँ हैं । कमजोर संवाद, दुर्बल श्रोता, बातों में हकलाहट होना, कमजोर आवाज़ और वर्चस्व दिखाकर से बातें यह समस्याएँ निष्क्रिय कंठ चक्र की वजह से आनेवाली मानसिक तथा भावनिक कठिनाईयाँ हैं ।

योगशास्त्र में इसकी पहचान 16 पंखुड़ियों के बैंगनी कमल के रूप में की गई है।

ब्लू प्राण शक्ति :

अध्यात्म में इसे ‘ब्लू प्राण शक्ति’ भी कहा गया है। अध्यात्म में इसे आत्मा की शुद्धि का प्रतीक माना गया है इसलिए इस चक्र से जुड़े लोग या जिसने इस चक्र को जाग्रत किया हो वह मन और आत्मा से शुद्ध होता है और केवल इसी के विषय में सोचता है। ऐसे लोगों की पहचान करना भी आसान है। ये बहुत अच्छे और प्रभावशाली वक्ता होते हैं।

मानसिक शक्ति के लिए:

इस चक्र के जागरण से व्यक्ति को अभूतपूर्व मानसिक शक्ति का एहसास होता है। ऐसे व्यक्तियों को भूत और भविष्य का ज्ञान भी होता है। इनके मन में शांति होती है और ये विचारों के जाल से पूर्णतया मुक्त रहते हैं।

मानसिक शक्ति के लिए:

इनके मन में किसी प्रकार की उलझन नहीं रहती, ये जो भी सोचते हैं भावना से मुक्त होकर सोचते हैं और जगत कल्याण इनका एकमात्र लक्ष्य बन जाता है। ये मुख्य रूप से दार्शनिक कहे जा सकते हैं।

अवरुद्धि की निशानियां:

अगर विशुद्धि चक्र में अवरोध उत्पन्न हों तो व्यक्ति को नासिका और स्वर संबंधी परेशानियां सबसे पहले उत्पन्न होती हैं। इसलिए अगर आपमें आगे बताया एक भी लक्षण है तो समझें आपको अपने विशुद्धि चक्र की ब्लॉकेज समाप्त करने की आवश्यकता है।

लक्षण :

गले में लगातार परेशानियां - आए दिन खराश उत्पन्न होना - लगातार सिर दर्द का होना - दातों की परेशानियां - मुंह का अल्सर या छाले - थाइरॉयड - गर्दन दर्द - टीएमडी (मुंह के जोड़ों में पैदा हुई परेशानी जिसमें मुंह खोलने में व्यक्ति को परेशानी होती है और वह कुछ भी खा नहीं पाता)

सामाजिक परेशानियां:

विशुद्धि चक्र की परेशानियां अधिक बढ़ जाने पर यह भी संभव है कि उपर्युक्त में कोई भी लक्षण नजर ना आएं लेकिन यह मानसिक या भावनात्मक स्तर पर आपको गहराई से प्रभावित करे। ऐसे में कोई शारीरिक समस्या ना होकर मानसिक और साइकोलॉजिकल परेशानियां होने लगती हैं।

इसलिए अगर आपको डेली लाइफ में आगे बताए ये लक्षण दिखें तो समझें कि आपका विशुद्धि चक्र पूरी तरह अवरुद्ध है और आपको अपनी समस्याएं दूर करने के लिए एकमात्र सहारा यही लेना होगा कि इस चक्र को जाग्रत करें। - अचानक बोलने की अक्षमता पैदा होना या किसी से बात करने या अपनी बात रखने में भय महसूस होने लगना, अचानक आपको लगे कि आपमें शर्मिंदगी के भाव आने लगे हैं और आप हर किसी से हिचक के साथ मिलते-जुलते या बात करते हैं - आप लोगों से कटने लगें हों - स्वभाव से रचनात्मक होने के बावजूद आपको लगे कि आपमें इसका ह्रास होने लगा है या आप अपनी रचनात्मकता का पूरा और सही जगह पर उपयोग नहीं कर पा रहे हैं - आपको लोगों से जुड़ने में समय लगे और मन में एक अनजाना, मन में अचानक पैदा हुए इन भावों के कारण व्यक्ति में क्रोध, अधीरता, तुनकमिजाजी, दूसरों पर हावी होने की प्रवृत्ति भी आ सकती है। यह इन अक्षमताओं के कारण स्वत: पैदा हुए भाव हो सकते हैं या यह भी हो सकता है व्यक्ति अचानक आई अपनी इन कमियों को छुपाने के लिए ऐसा करे।

बोलने में पैदा हुई परेशानी और अपनी बातें ना रख पाने के कारण भी ये बहुत हद तक खुद को अत्यंत निरीह भाव में पाते हैं। ऐसे में सामाजिक रूप से लोगों से मिलने, भीड़ या ग्रुप में बोलने में डरने लगते हैं और इनमें एक झुंझलाहट का भाव उत्पन्न होता है। परिणाम्स्वरूप इनका सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन बुरी तरह प्रभावित होता है।

कैसे करें सुधार:

(1) 10 मिनट तक प्रति दिन सुबह - शाम उज्जायी प्राणायाम करें ।

(2) जप करना तथा गायन की वजह से विशुध्द चक्र खुल सकता है ।

(3) जादा पानी की मात्रा होनेवाले खाद्य पदार्थों की वजह से चक्र खुलता है जिसमें फल, सब्जियाँ तथा ज्यूसेस् आदि शामिल हैं ।

(4)  विशुद्ध चक्र का मंत्र : इस चक्र का मन्त्र होता है – हं। इस चक्र को जाग्रत करने के लिए आपको हं मंत्र का जाप करते हुए ध्यान लगाना होता है।

ब्रह्म मुहूर्त में उठ कर ध्यान करने से शारीरिक, मानसिक, असाध्य रोग तथा कई जेनेटिक विमारियां  दूर हो जाती है ।  



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