आदिश्री अरुण का महा उपदेश, भाग - 34; MAHA UPADESH OF AADISHRI PART – 34 A


आदिश्री अरुण का महा उपदेश, भाग - 34

(आदिश्री अरुण)


आदिश्री अरुण का महा उपदेश, भाग - 34; MAHA UPADESH OF AADISHRI PART – 34
योग का अर्थ होता है भगवान से संपर्क स्थापित करना  भगवद्भाव की भावना करते - करते प्राणी का ह्रदय जब भगवन्मय हो जाता है तब उसके कर्म - बीजों (जन्म - मृत्यु के बीजों) का खजाना ही जल जाता है और वह प्राणी श्रीभगवान को प्राप्त कर लेता है  जिन लोगों का  चित्त लैकिक - वैदिक आदि कर्मों की वासना से बहिर्मुख हो रहा है उनसे ईश्वर बाहत दूर रहते हैं (श्रीमद्भागवतम महा पुराण 10 ;86 :47) बहिर्मुखता से प्राप्त होने वाला सुख राजस है (श्रीमद्भागवतम महा पुराण 11 ;25 :29) ईश्वर ने कहा   कि " जो  पुरुष मेरी  शरण  में हैं उसे  अन्तर्मुख करने वाले निष्काम कर्म अर्थात नित्य कर्म करना चाहिए  

उन कर्मों का बिलकुल परित्याग कर देना चाहिए जो बहिर्मुख बनाने वाले अथवा सकाम हों जब आत्मज्ञान की उत्कट इच्छा जाग उठे तब तो कर्म सम्बन्धी विधि - विधानों का आदर नहीं करना चाहिए    (श्रीमद्भागवतम महा पुराण 11 ;10 : 4)  योग का सही (यथार्थ) रहस्य जानने वाले पुरुष अपने ह्रदय में छिपे हुए भगवान् को बहार खोजते हैं (श्रीमद्भागवतम महा पुराण 4 ;13 : 48 )  महर्षि वेद व्यास जी ने कहा कि त्रेता आदि युगों में जब विद्वानों ने देखा कि मनुष्य परस्पर एक दूसरे का अपमान करते हैं तब उन लोगों ने उपासना की  सिद्धि के लिए भगवान् की प्रतिमा की प्रतिष्ठा की (श्रीमद्भागवतम महा पुराण 7 ;14 :39) 

ईश्वर ने कहा  किमेरी प्राप्ति के सम्पूर्ण साधनों की एक ही शर्त है मुझमें मन लगाए, मुझमें ध्यान लगाए। जो मुझसे मिलन चाहता है उसे सबसे पहले अपने अंदर ही झांकना चाहिए।  यह तभी संभव हो सकता है जब मनुष्य का अपना शरीर उसके नियंत्रण में हों यदि शरीर काबू में हों तो मनुष्य को ध्यान लगाने का उद्देश्य नहीं मिल पाएगा ध्यान लगाने का अंतिम उद्देश्य परमात्मा से संपर्क करना होता है परन्तु  इसके प्रथम चरण में मनुष्य को आत्म शुद्धि प्राप्त होती है , स्वक्षता मिलती है और ध्यान लगाने वाले का अन्तःकरण निर्मल हो जाता है  जब तक  मनुष्य अपने अन्तःकरण की शुद्धि नहीं कर लेता तब तक वह प्राणी तो परमात्मा से संपर्क स्थापित कर सकता है और तो आत्मा - परमात्मा में लीन हो सकता है यह भी जान लो कि जब ध्यान लगाने का पहला उद्देश्य अन्तःकरण की शुद्धि है तब तो  अन्तःकरण की शुद्धि पर विशेष ध्यान देना चाहिए इस बात को याद रखना अति आवश्यक है कि जिन लोगों ने अपना अंतःकरण शुद्ध नहीं किया है वह लाख कोशिश करने के बाद भी तो कभी ईश्वर से कभी संपर्क स्थापित कर सकता है और कभी ईश्वर को प्राप्त कर सकता है।“

Post a Comment

और नया पुराने