क्यों मानते हैं भव्य प्रकाश का त्यौहार या दीपावली ?
आदिश्री अरुण
आप सभी कलियुग के प्रशासन में रहते हैं
और आप अभी 2017 में हैं । इस बार आप सभी लोग दीपावली 19 अक्टूबर को मनाएँगे
। लेकिन क्या आप जानते हैं कि दीपावली क्यों मानते हैं ? यह कोई केवल त्यौहार ही नहीं है जो आपके मन को खुशियाँ प्रदान करता है बल्कि इसके पीछे मुख्य 10 एतिहासिक कारण हैं जिसके चलते लोग दीपावली मानते हैं। इस भव्य प्रकाश के त्यौहार को केवल हिन्दू ही नहीं बल्कि बहुत सारे दूसरे लोग भी मनाते हैं ।
कलियुग में इस भव्य प्रकाश के त्यौहार को मानने के पीछे बहुत ही बड़ा दिव्य रहस्य छिपा है जिसके चलते लोग दीपावली मनाते हैं । 29 सितम्बर 1989 , दिन शुक्रवार, हिन्दी तिथि आश्विन मास की कृष्ण पक्ष अमावस्या को उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में पूर्ण ब्रह्म ने अपना एकलौता पुत्र जिसको पूर्ण ब्रह्म का प्रतिबिम्ब कहते हैं अथवा पूर्ण ब्रह्म का बेटा कहते हैं अथवा पूर्ण ब्रह्म का एकलौता वारिश कहते हैं अथवा आदिश्री अरुण कहते हैं उनको ईश्वरीय साम्राज्य का भार उनके कंधे पर सौंपने का निर्णय लिया और 3 अक्टूबर 1989, दिन मंगलवार, विनायक चतुर्दशी, हिन्दी तिथि आश्विन मास की शुक्ल पक्ष तृतीया को बिशाखा नक्षत्र में देव दूत भेज कर आदिश्री अरुण को इस बात की सूचना दी तथा पूर्ण ब्रह्म की योजना में निर्धारित तिथि 14 अक्टूबर 1989, दिन शनिवार, हिन्दी तिथि आश्विन मास की शुक्ल पक्ष पूर्णिमा को अर्थात (शरद पूर्णिमा / मीराबाई जयन्ती को) रेवती नक्षत्र में आदिश्री अरुण ने 9 बज कर 30 मिनट पर ईश्वरीय साम्राज्य का भार अपने कंधे पर लिया ।
पूर्ण ब्रह्म ने सुसमाचार सुनाने के लिए आदिश्री अरुण को अभिषेक किया और उसे धरती पर इसलिए भेजा ताकि खेदित मन के लोगों को शांति दे , विलाप करने वाले के सर पर की रख को दूर करके सुन्दर पगड़ी बाँध दे । उनका विलाप दूर करके हर्ष का तेल लगाए और उनकी उदासी को हटा कर यश का ओढ़ना ओढ़ा दे । लोगों के आंशुओं को आनन्द में बदल दे तथा उनको मोक्ष प्रदान कर महिमा में ले जाए । धर्मशास्त्र ने आदिश्री अरुण के विषय में भविष्यवाणी किया और लोगों को चेतावनी दिया कि - उठ , प्रकाशवान हो; क्योंकि तेरा प्रकाश आगया है और आदिश्री अरुण का तेज तुझ पर उदय हुआ है । देख, पथ्वी पर तो अँधियारा और राज्य - राज्य के लोगों पर घोर अंधकार छाया हुआ है परन्तु तेरे ऊपर आदिश्री का प्रकाश उदय हुआ है और उसका तेज तुझ पर प्रकट होगा । यह बात जान कर लोगों के हृदय में खुशी का ठिकाना न रहा । अपने इस ख़ुशी
को प्रदर्शित करने के लिए लोगों ने अपने - अपने घरों में उस दिन अर्थात 3 अक्टूबर 1989 को घी के दिए
जलाए।
उस दिन ( 3 अक्टूबर 1989 को) आदिश्री फेथ के सभी लोगों ने ईश्वरीए साम्राज्य का झंडा लहराया तथा उस दिन से (3 अक्टूबर को) सभी लोग ख़ुशी में अपने - अपने घरों में दीप जला कर हर्षोउल्लास के साथ दीपावली अर्थात भव्य प्रकाश का त्यौहार मनाने लगे ।
दीपावली मनाने के पीछे मुख्य 9 एतिहासिक कारण और भी हैं जिसके चलते लोग दीपावली मानते हैं जो निम्न प्रकार
वर्णित है :-
चुकि पूर्ण ब्रह्म ने 3 अक्टूबर 1989, दिन मंगलवार, विनायक चतुर्दशी, हिन्दी तिथि आश्विन मास की शुक्ल पक्ष तृतीया को
बिशाखा नक्षत्र में देव दूत भेज कर आदिश्री अरुण को ईश्वरीय साम्राज्य का भार अपने कंधे पर उठाने की सूचना दी थी । इसलिए
3 अक्टूबर को प्रत्येक वर्ष आदिश्री फेथ के सभी लोग हर्षोल्लास के साथ भव्य प्रकाश अथवा दीपावली का त्यौहार मनाने लगे ।
उस दिन ( 3 अक्टूबर 1989 को) आदिश्री फेथ के सभी लोगों ने ईश्वरीए साम्राज्य का झंडा लहराया तथा उस दिन से (3 अक्टूबर को) सभी लोग ख़ुशी में अपने - अपने घरों में दीप जला कर हर्षोउल्लास के साथ दीपावली अर्थात भव्य प्रकाश का त्यौहार मनाने लगे ।
दीपावली मनाने के पीछे मुख्य 9 एतिहासिक कारण और भी हैं जिसके चलते लोग दीपावली मानते हैं जो निम्न प्रकार
वर्णित है :-
(1) देवी लक्ष्मी जी का जन्म दिन:
धन की देवी लक्ष्मी कार्तिक मास के अमावश्या को समुद्र-मंथन के समय राजा क्षीर सागर की पुत्री (The daughter of the king of the milky ocean) प्रकट हुई थी । इसके बाद देवी लक्ष्मी की शादी उसी अमावश्या के अँधेरी रात को उसी वर्ष भगवान श्री विष्णु के साथ हुई थी । इस शुभ अवसर पर भव्य प्रकाश वाली दीप जला कर पंक्तयों में रखी गई थी । इसलिए दीपावली के दिन लोग देवी लक्ष्मी के जन्म दिन तथा उनका शादी-सालगिरह (MARRIAGE - ANNIVERSARY) मानते हैं ताकि आने वाले पुरे साल आशीष मिले ।
धन की देवी लक्ष्मी कार्तिक मास के अमावश्या को समुद्र-मंथन के समय राजा क्षीर सागर की पुत्री (The daughter of the king of the milky ocean) प्रकट हुई थी । इसके बाद देवी लक्ष्मी की शादी उसी अमावश्या के अँधेरी रात को उसी वर्ष भगवान श्री विष्णु के साथ हुई थी । इस शुभ अवसर पर भव्य प्रकाश वाली दीप जला कर पंक्तयों में रखी गई थी । इसलिए दीपावली के दिन लोग देवी लक्ष्मी के जन्म दिन तथा उनका शादी-सालगिरह (MARRIAGE - ANNIVERSARY) मानते हैं ताकि आने वाले पुरे साल आशीष मिले ।
(2) दीपावली के दिन असुर राजा बलि के कैद से देवी लक्ष्मी जी को छुड़ाया जाना :
त्रेतायुग में भगवान विष्णु जी वामन अवतार लेकर (जो भगवान विष्णु का पाँचवां अवतार था) देवी लक्ष्मी को राजा बलि के कैद से छुड़ाया । असुर राजा बलि राजा विरोचन का पुत्र तथा भक्त प्रह्लाद का पौत्र था । राजा बलि असुरों का बहुत शक्तिशाली राजा था और उनका शासन पूरे पृथ्वी पर था । ब्रह्मा जी से वरदान पाने के कारण देवता लोग उनको पराजित नहीं कर सके । उस राजा बलि के कैद से देवी लक्ष्मी जी को छुड़ाना इतना आसान काम नहीं था । राजा बलि भगवान के बहुत बड़े भक्त और बहुत बड़ा दानवीर शासक था । वह सत्यवादी, ब्राह्मणों की सेवा करने वाला भक्त था तथा वह हमेशा यज्ञ और तप किया करता था। इसलिए भगवान विष्णु जी ने एक ट्रिक खेला । भगवान विष्णु जी वामन अवतार लेकर तीन पग भूमि दान में मांग लिया। भगवान विष्णु जी ने एक पग में पूरे धरती को नाप लिया, दूसरे पग में पूरे आकाश को नाप लिया तब उन्होंने राजा बलि से पूछा कि तीसरा पग कहाँ रखूं ? राजा बलि ने अपना सर झुका कर कहा कि तीसरा पग मेरे सर पर रखिए । इसलिए दीपावली को वामन अवतार का असुर राजा बलि पर विजय का प्रतिक माना जाता है तथा असुर राजा बलि से देवी लक्ष्मी को मुक्त करने के उपलक्ष में दीपावली मनाया जाता है ।
दीपावली के दिन ही भगवान श्रीकृष्ण असुर नरकासुर का बद्ध किए और उसके द्वारा बन्धक बनाये गए 16000 नारियों को मुक्त कराए । इसलिए यह पर्व दो दिन मनाया जाता है - एक दिन दीपावली पर्व के रूप में और दूसरा दिन विजय पर्व के रूप में ।
(4) पांडवों का अज्ञातवास से लौटना :
कार्तिक मास के अमावस्या को 12 वर्ष के दौरान पांडव, कौरव के द्वारा खेले गए गेम को हरा कर अज्ञातवास से वापस लौटे । इसलिए जो लोग पांडव से प्यार करते थे वे पांडव के वापस लौटने की ख़ुशी में दीप जलाए । इसलिए उस दिन से दीपावली मनाया जाने लगा ।
(5) भगवान राम की विजय :
रामायण के अनुसार कार्तिक मास के अमावस्या को भगवान राम 14 वर्ष का वनवास काट कर तथा रावण को मारकर लंका पर विजय प्राप्त कर, माँ सीता तथा लक्ष्मण के साथ अयोध्या लौटे थे । अयोध्यावासी उनके अयोध्या लौटने की ख़ुशी में पूरे शहर को दीप से सजाया जो पहले कभी नहीं हुआ था । इसलिए उस दिन से लोग दीपावली मानाने लगे ।
(6) विक्रमादित्य का राज्याभिषेक :
दीपावली के दिन हिन्दुओं का महान राजा विक्रमादित्य का राज्याभिषेक हुआ था । इसलिए दीपावली सभी लोगों के लिए एक एतिहासिक पर्व बन गया ।
दीपावली के दिन हिन्दुओं का महान राजा विक्रमादित्य का राज्याभिषेक हुआ था । इसलिए दीपावली सभी लोगों के लिए एक एतिहासिक पर्व बन गया ।
(7) आर्य समाज के लोगों के लिए विशेष दिन :
कार्तिक मास के अमावस्या अर्थात दीपावली के दिन ही आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानन्द निर्वाण प्राप्त किए । इसलिए तभी से महर्षि दयानन्द जी को चाहने वाले लोग दीपावली मनाने लगे ।
कार्तिक मास के अमावस्या अर्थात दीपावली के दिन ही आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानन्द निर्वाण प्राप्त किए । इसलिए तभी से महर्षि दयानन्द जी को चाहने वाले लोग दीपावली मनाने लगे ।
(8) जैनियों के लिए विशेष दिन :
दीपावली के दिन ही जैनधर्म के संस्थापक महावीर तीर्थांकर जी निर्वाण प्राप्त किए । इसलिए तभी से महावीर तीर्थांकर जी को चाहने वाले लोग दीपावली मनाने लगे ।
दीपावली के दिन ही जैनधर्म के संस्थापक महावीर तीर्थांकर जी निर्वाण प्राप्त किए । इसलिए तभी से महावीर तीर्थांकर जी को चाहने वाले लोग दीपावली मनाने लगे ।
(9) सिक्खों के लिए विशेष दिन :
दीपावली के दिन ही सभी सिक्ख लोग तीसरे सिक्ख गुरु से आशीर्वाद पाने के लिए जमा हुए तब वे तीसरे सिक्ख गुरु अमर दास जी दीपावली के दिन ही "दीपावली" को रेड लेटर डे के नाम से प्रतिष्ठापित किया । सन 1577 को, दीपावली के दिन ही अमृतसर में गोल्डेन टेम्पल (Golden Temple) का शिलान्यास किया गया । इसलिए सिक्ख धर्म के मानने वाले लोग तभी से दीपावली मनाने लगे ।
दीपावली के दिन ही सभी सिक्ख लोग तीसरे सिक्ख गुरु से आशीर्वाद पाने के लिए जमा हुए तब वे तीसरे सिक्ख गुरु अमर दास जी दीपावली के दिन ही "दीपावली" को रेड लेटर डे के नाम से प्रतिष्ठापित किया । सन 1577 को, दीपावली के दिन ही अमृतसर में गोल्डेन टेम्पल (Golden Temple) का शिलान्यास किया गया । इसलिए सिक्ख धर्म के मानने वाले लोग तभी से दीपावली मनाने लगे ।