Reverence / श्रद्धा
आदिश्री अरुण
श्रद्धा
ईश्वर ने कहा कि हे मानव ! तुमको मुझ तक लाने में श्रद्धा सर्व श्रेष्ट साधन है। श्रद्धा तुम्हारे जीवन का आधार है, श्रद्धा तुम्हारी सफलता का पुरस्कार है, श्रद्धा तुम्हारी प्रार्थना का स्वर है, श्रद्धा का ही प्रकाश पाकर तुम्हारे मन और आत्मा में ईश्वर के प्रति समर्पण की भावना जागृत होती है, श्रद्धा प्राणि मात्र के लिए दुखों से मुक्ति और सुख का सन्देश है, श्रद्धा तुमको ईश्वर के चरणों के समीप ले जाता है और श्रद्धा ही तुम्हारे मन में जप तप व्रत की प्रेरणा जगाएगी।
हे प्राणी ! यदि आकाश में सहस्त्रों सूर्य एक साथ उदय हों तो उससे उत्पन्न प्रकाश आदिश्री रूप अथवा प्रकाश समुद्र से उत्पन्न प्रकाश के दिव्य तेज के सामने अंधकार की मात्र छाया ही रहेगा। आदिश्री के प्रकट होते ही चेतन ही नहीं, प्रकृति के जड़ पदार्थ भी आदिश्री के सामने अपनी - अपनी श्रद्धा अर्पित करेगी।
मेरी इच्छा मात्र से जिस वरदायक अविनाशी रूप को तुम देख रहे हो उसे न वेदों से, न ज्ञान से तथा न ही दान से जाना जा सकता है। मुझको जानने का उपाय है अनन्य भक्ति और अनन्य भक्ति बिना श्रद्धा के हो नहीं सकती। अनन्य भक्ति के द्वारा जो जीवात्मा समस्त सांसारिक दुखों, कष्टों, तकलीफों, पीड़ाओं एवं आपदाओं से मुक्त होने की इच्छा रखते हैं उन्हें अपने जीवन में कल्कि शब्द सूरत योग को अपनाना पड़ेगा।