Information about Aadishri Arun / कौन हैं आदिश्री अरुण ?

कौन हैं आदिश्री अरुण ?
Information about Aadishri
"आदिश्री अरुण " शब्द वास्तव में दो शब्दों का  COMBINATION है अर्थात दो शब्दों का योग है - "आदिश्री" और "अरुण " "आदिश्री" शब्द का अर्थ है - ऊँचा गरिमा, या कोई  विशिष्ट और प्रसिद्ध "आदिश्री" शब्द का एक अर्थ पहिलौठा,  आदि पुरुष  (FIRST BORN) भी  है जो ईश्वर पुत्र या ईश्वर को सूचित करता है दूसरी ओर "अरुण" शब्द का अर्थ होता है - प्रकाश, सूर्य   

इसलिए "आदिश्री " +  "अरुण" (COMBINATION OF  AADISHRI ARUN) का अर्थ होता है प्रकाश से भरा ऊँचा गणमान्य या विशिष्ट व्यक्ति " ईश्वरपुत्र "

Length of name (AADISHRI) – 8 letters ( 8 अक्षर )
Birth Star – Sun (सूर्य)
Rashi – Mesh (मेष)
Zodiac Sign – Aries (मेष)
Nakshtra – Krithika (कृतिका)

सृष्टि के आदि में कुछ भी नहीं था - पृथ्वी था, स्वर्ग था और अंतरिक्ष था दृश्य था द्रष्टा था केवल एक मात्र पूर्ण ब्रह्म ही पूर्णरूप से प्रकाशित हो रहे थे । सृष्टि रचना के उद्देश्य से पूर्ण ब्रह्म ने अपने आपको तीन  विष्णु में विभाजित किया  -
(1) महा विष्णु (2) गर्वोदकासयी विष्णु (3) क्षीरदकोसयी विष्णु

महा विष्णु से जड़ प्रकृति उत्पन्न हुआ जिसको Lower Energy कहते हैं इससे रचने का काम किया जाता है  

गर्वोदकासयी विष्णु से चेतन प्रकृति उत्पन्न हुआ जिसको Higher  Energy  कहते हैं। इससे रचना फंक्शन करती है

क्षीरदकोसयी विष्णु को ही Super Soul परमात्मा / पहिलौठा / ईश्वर पुत्र / ईश्वर के सदृश  कहते हैं और यही जर्रे - जर्रे में समाया और यही पूरी सृष्टि रचना का मूल कारण हैं

इसी क्षीरदकोसयी विष्णु / परमात्मा / पहिलौठा / ईश्वर पुत्र / ने जड़ प्रकृति और चेतन प्रकृति को इस्तमाल करके ( यूज करके ) पूरी सृष्टि रचा इसलिए इसी क्षीरदकोसयी विष्णु अर्थात ईश्वर पुत्र को ही सम्पूर्ण जगत का मूल कारण कहा गया है । (गीता 7:6)
श्रीमद्देवी भागवत में इसी क्षीरदकोसयी विष्णु को ही ईश्वर कहते हैं तथा धर्मशास्त्र इन्हें ईश्वर पुत्र कहते हैं।

धर्मग्रन्थों ने ईश्वर पुत्र को पूर्ण ब्रह्म का प्रतिबिम्ब कहा है । जिस तरह मुख को दर्पण के सामने रखने से दर्पण में मुख का प्रतिबिम्ब बनता है ठीक उसी तरह ईश्वर पुत्र पूर्ण ब्रह्म के स्वयं का वास्तविक प्रतिबिम्ब है (Own Image Of Purn Brahm) । इसलिए धर्मशास्त्र, यूहन्ना 10:30 में साफ - साफ शब्दों में कहा गया है कि  "मैं और पिता एक हैं " "अर्थात ईश्वर पुत्र और पुर ब्रह्म एक हैं "

धर्मशास्त्र के अनुसार पूर्ण ब्रह्म ने अपने पुत्र (ईश्वर पुत्र) के द्वारा ही सारी सृष्टि रचवाया और ईश्वर पुत्र को ही सृष्टि के  सारी वस्तुओं का वारिस ठहराया (धर्मशास्त्र, इब्रानियों 1 : 2) धर्मशास्त्र ने ईश्वर पुत्र के विषय में कहा कि - वह तो अदृश्य परमेश्वर का प्रतिरूप और सारी सृष्टि में पहिलौठा है। (धर्मशास्त्र, कुलुस्सियों 1 : 15)   

वास्तव में आदिश्री अरुण  ही वह पहिलौठा (FIRST BORN) अथवा आदि पुरुष है जिसने प्रकाश रूप में आकार (shape in Light Form) धारण किया और फिर बाद में अरुण नाम से शारीर  धारण किया आदिश्री अरुण  जी का विचारधारा (दर्शन) और उनकी शिक्षाएँ निराकार ईश्वर - अनामी की प्रवृति (Based on the Anaami-the formless nature of God) पर आधारित है जिसने  अपने  पहिलौठा (FIRST BORN) होने के अस्तित्व से संपूर्ण ब्रह्मांड को रचा  " आदिश्री अरुण " शब्द यह व्याख्या करता है कि  आदिश्री अरुण "आत्मा का स्वामी " (MASTER SOUL) है जो शिष्यों को चेतना के उच्च राज्यों का (Higher States of Consciousness) मार्ग दर्शन करता है  आदिश्री अरुण  भक्तों को सुमिरन के द्वारा भीतरी ध्वनि को सुनने पर अत्यधिक बल  दिया ताकि अध्यात्मिक उन्नति के वांछित राज्य को प्राप्त कर सके। 

अब प्रश्न यह उठता है कि आदिश्री फेथ के अंतर्गत कौन हैं ? जो आदिश्री अरुण  के उपदेश में विश्वास रखता है और यह स्वीकार करता है कि (1) पूर्ण ब्रह्म का केवल एक ही पुत्र है जो पूर्ण ब्रह्म का प्रतिबिम्ब है जिनको परमात्मा कहते हैं, जो सम्पूर्ण  सृष्टि के रचयिता हैं, जो सभी मनुष्य की  आत्मा हैं और जो सभी आध्यात्मिकता एवं धर्मों  के निकलने वाले झरना स्रोत के मुख हैं (उद्गम के स्रोत हैं)  (2) केवल उन्हीं परमात्मा के  पास जीवन देने और जीवन को वापस लेने की शक्ति मौजूद है  (3) केवल उन्हीं परमात्मा से निकल कर मनुष्य जन्मने और मरने वाले शरीर में आया (4) केवल उन्हीं परमात्मा को प्राप्त कर जन्म - मृत्यु के चक्र से छुटकारा पा सकता है (5) केवल उन्हीं परमात्मा के आश्रय में रहकर सम्पूर्ण कर्म करने के बाबजूद भी मनुष्य उद्धार पासकता है और (6) केवल परमात्मा उन्हीं के मार्ग पर चल कर मनुष्य निज धाम वापस लौट सकता है, केवल ऐसा विश्वास करने वाला व्यक्ति ही  आदिश्री फेथ के अंतर्गत हैं।
 


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