लोग क्यों मरते हैं
आदिश्री अरुण
1 जनवरी 2017 को रोहिणी सेक्टर - 5 के सामुदायिक भवन (रिठाल मेट्रो स्टेशन के पास ) दिल्ली में मन्नत सभा तथा आदिश्री अरुण जी का जन्मोत्सव धूम धाम से मनाया गया। मन्नत सभा के शुभ अवसर पर "धरती पर बिखरे हुए लोगों " शब्द से लोगों को संबोधित करते हुए आदिश्री अरुण जी ने कहा कि देह (शरीर) दो प्रकार के होते हैं - (1) स्वाभाविक देह (शरीर) और (2) आत्मिक देह (शरीर) । स्वाभाविक देह (शरीर) में लोग नहीं मरते हैं और आत्मिक देह (शरीर) में लोगों को मरना पड़ता है । मनुष्य ने ईश्वर का कहना नहीं माना इसलिए उसे स्वाभाविक देह (शरीर) को त्यागना पड़ा और वह आत्मिक देह (शरीर) में आगया । धर्मशास्त्र, 1 कुरिन्थियों 15 :45 - 46 यह भविष्यवाणी करता है कि प्रथम मनुष्य अर्थात आदम जीवित प्राणी बना और अन्तिम आदम जीवनदायक आत्मा बना। परन्तु आदम पहले आत्मिक न था, पर स्वाभाविक था, इसके बाद वह आत्मिक हुआ । अर्थात आदम पहले आत्मिक देह (शरीर) में नहीं था बल्कि वह स्वाभाविक देह (शरीर) में था। बाद में वह आत्मिक देह (शरीर) में आगया । यही कारण है कि मनुष्य को मरना पड़ता है । यदि वह मृत्यु से बचाना चाहता है तो उसको अपना स्वाभाविक देह (शरीर) धारण करना पड़ेगा और आपको आत्मिक देह से स्वाभाविक देह में केवल ईश्वर पुत्र ही ले जा सकते हैं क्योंकि ये एथोरिटी केवल आदिश्री अरुण जी के ही पास है । इसके लिए आदिश्री अरुण जी के शिक्षाओं पर चलना होगा । उन्होंने कहा कि " तुम तो नहीं मरोगे पर हवा में बदल जाओगे ताकि तुम ईश्वर से मिल सको और तुम्हें मुक्ति मिल जाय "