(1) ईश्वर में आपका विश्वास अनन्य
(exclusive) होना चाहिए
:
समाज में अधिकतर लोग अपनी समझ के अनुसार चलते हैँ और हर कार्य को अपनी समझ के अनुसार करते हैँ । वे ईश्वर की योजनाओं के अनुसार नहीं चलते हैँ । इसी करण वे दुष्टता करते हैँ, वे अन्याय करते हैँ और झूठ का फल खाते हैँ । इस मार्ग पर चलने वालों को ईश्वर ने चेतावनी दिया कि - सावधान हो जा कहीं तुम गिर न पड़ो। नीतिवचन यह कहता है कि जो अपने आप पर भरोसा करता है वह मुर्ख है और जो ईश्वर पर भरोसा करता है वह हृष्ट-पुष्ट हो जाता है।
(2) तुम्हारे ह्रदय में ईश्वर के लिए पूर्ण विश्वास हो :
चुकि तुम्हारा ह्रदय - मन, भावना और इच्छा का प्रतिबिम्ब है इसलिए ईश्वर के लिए पूर्ण विश्वास ह्रदय, मन, भावना और स्वतः इच्छा से होना चाहिए । जो इसके विपड़ीत है उसको संदेह कहते हैँ । जो ईश्वर में विश्वास करते हैँ वे ईश्वर की चुनौतियाँ को मानते हैँ और पूर्ण मन से ईश्वर पास आते हैँ । जिसने ईश्वर में पूर्ण विश्वास किया है उसने गवाही दी है कि "ईश्वर ने कहा - तुम मुझे ढूंढ़ोगे और पाओगे भी क्योंकि तुम अपने सम्पुण मन से मेरे पास आओगे ।"
(3) स्वयं पर निर्भर नहीं रहिए बल्कि केवल ईश्वर पर ही निर्भर रहिए:
आप में से अधिकतर लोगों को निराशा का सामना करना पड़ता है इसका कारण यह है कि आपको समाज में यह सिखाया गया है कि केवल स्वयं पर भरोसा करो । लेकिन मैंने आपको यह बताने के लिए बुलाया है कि एक अच्छी जिंदगी जीने के लिए स्वयं से ज्यादा ईश्वर पर विश्वास करने की जरुरत है; क्योंकि ईश्वर मनुष्य से ज्यादा सामर्थ्यवान है, मनुष्य से ज्यादा शक्तिशाली है और जो काम मनुष्य के वश की बात नहीं है वह काम भी ईश्वर सहज से, बड़ी आसानी से कर सकते हैँ ।