मनुष्य मरता क्यों है ?
ईश्वर पुत्र अरुण
मनुष्य मरता क्यों है ?
परमेश्वर ने देखा कि मनुष्य का पतन यहाँ तक हो गया है कि अब वह निम्नतम श्रेणी के शरीर में आगया है। वह जन्म - मृत्यु के चक्र में इस तरह फस चुका है कि अब उसके लिए जन्म - मृत्यु चक्र से छूटना सम्भव नहीं है।
परमेश्वर ने यह भी देखा कि मनुष्य बहुत दुखी एवं पड़ेशान है, उसको जन्म - मृत्यु के वादियों से होकर गुजरना पड़ता है; इसलिए उन्होंने स्वयं को निम्न श्रेणी के शरीर में आकर मनुष्यों से मिलने का निर्णय लिया और कल्कि नाम से धरती पर आगए। उन्होंने मनुष्यों को जन्म और मृत्यु के कारणों को समझाया और उन्हें अनन्त जीवन देने का फैसला किया । उनहोंने मनुष्य को मृत्यु के लिए 7 कारणों को जिम्मेदार बताया जो निम्न प्रकार है :
(1) ईश्वर की आज्ञा को नहीं मानना : आदम और हव्वा ने ईश्वर का कहना नहीं माना । उसने ईश्वर की आज्ञा का भंग किया । इसी कारण ईश्वर ने उसे दंड दिया और वह जन्मने - मरने वाले शरीर में आगया । तब से मनुष्य की मृत्यु होने लगी और उसका जन्म भी होने लगा । इसके पहले मृत्यु नहीं थी । अगर मनुष्य अपने गलती के लिए ईश्वर के सामने पश्चाताप करे और अपने गलती को सुधार ले तो वह मृत्यु से बच जाएगा ।
(2) पाप करने के कारण : लोगों को पाप करने के कारण मरना पड़ता है क्योंकि पाप की मजदूरी मृत्यु है।(धर्मशास्त्र, रोमियों 6 :23) अगर मनुष्य पाप करना छोड़ दे तो उसकी मृत्यु नहीं होगी क्योंकि ईश्वर ने संकल्प किया कि जो पाप करे वही मरेगा । (धर्मशास्त्र, यहेजकेल 18 :20)
(3) परमेश्वर के विधियों पर नहीं चलना : परमेश्वर ने कहा कि मनुष्य मेरी सब विधियों को माने और उसे पर चले तो वह जीवित रहेगा । (धर्मशास्त्र, यहेजकेल 18 :19)
परमेश्वर ने यह कहा कि मनुष्य सारी नियमों पर चले और एक नियम को तोड़ दे तो जितना सारे नियमों को तोड़ने की सजा है उतनी ही सजा एक नियम को तोड़ने की है । लोग ईश्वर के कुछ नियमों पर तो चलते हैं और बाकि नियमों को तोड़ देते हैं। इसी कारण लोगों को मरना पड़ता है । यदि मनुष्य ईश्वर के सारे नियमों को माने और उसे पर चले तो वह जीवित रहेगा ।
(4) मनुष्य का आत्मिक देह (शरीर) में आजाना : देह (शरीर) दो प्रकार के होते हैं - (1) स्वाभाविक देह (शरीर) और (2) आत्मिक देह (शरीर) । स्वाभाविक देह (शरीर) में लोग नहीं मरते हैं और आत्मिक देह (शरीर) में लोगों को मरना पड़ता है । मनुष्य ईश्वर का कहना नहीं माना इसलिए उसे स्वाभाविक देह (शरीर) को त्यागना पड़ा और वह आत्मिक देह (शरीर) में आगया । धर्मशास्त्र, 1 कुरिन्थियों 15 :45 - 46 यह भविष्यवाणी करता है कि प्रथम मनुष्य अर्थात आदम जीवित प्राणी बना और अन्तिम आदम जीवनदायक आत्मा बना। परन्तु आदम पहले आत्मिक न था, पर स्वाभाविक था, इसके बाद वह आत्मिक हुआ । अर्थात आदम पहले आत्मिक देह (शरीर) में नहीं था बल्कि वह स्वाभाविक देह (शरीर) में था। बाद में वह आत्मिक देह (शरीर) में आगया । यही कारण है कि मनुष्य को मरना पड़ता है । यदि वह मृत्यु से बचाना चाहता है तो उसको अपना स्वाभाविक देह (शरीर) धारण करना पड़ेगा और यह युक्ति आपको केवल ईश्वर पुत्र ही बता सकते हैं।
(5) पवित्र न होना : ईश्वर ने मनुष्य से कहा कि तुम पवित्र बनो क्योंकि मैं पवित्र हूँ ।(धर्मशास्त्र, 1 पतरस 1 :16) चुकि मैं नहीं मरता इसलिए तुम भी नहीं मरोगे ।जो कोई मुझ पर जीता है और मुझ पर विश्वास करता है तो वह अनन्त काल तक नहीं मरेगा । (धर्मशास्त्र, यूहन्ना 11 :26) गीता 13 : 7 में ईश्वर ने कहा कि बहार-भीतर दोनों की शुद्धि होनी चाहिए । बाहर की शुद्धि : सत्यता पूर्वक शुद्ध व्यवहार से अव्य की और उसके अन्न से आहार की तथा यथायोग्य बर्ताव से आचरणों की और जल मृत्तिकादि से शरीर की शुद्धि को बाहर की शुद्धि कहते हैं। भीतर की शुद्धि : राग, द्वेष, और कपट आदि विकारों का नाश होकर अंतःकरण का स्वच्छ हो जाना भीतर की शुद्धि कही जाती है ।
(6) ईश्वर पुत्र पर विश्वास नहीं करना : ईश्वर ने कहा कि जो कोई ईश्वर पुत्र को देखे और उसे पर विश्वास करे तो वह अनन्त जीवन पाएगा । (धर्मशास्त्र, यूहन्ना 6 :40) चुकि लोग ईश्वर पुत्र पर विश्वास नहीं करते हैं इसी कारण वे मरते हैं।
(7) यह नियम है कि जन्मने वालों की मृत्यु और मरने वालों का जन्म निश्चत है : गीता 2 :27 में ईश्वर ने कहा कि जन्मने वालों की मृत्यु और मरने वालों का जन्म निश्चत है । इसलिए जो मनुष्य मरना नहीं चाहता है उसको जन्म - मृत्यु के चक्र से छूटने का उपाय करना चाहिए । इसके लिये उसे गुरुदेव के शरण में जाना पडेगा क्योंकि केवल गुरुदेव ही मनुष्य को जन्म - मृत्यु के चक्र से छूटने का उपाय बता सकते हैं।
मनुष्य को मरने के बाद फिर मनुष्य को यही देह (शरीर) नहीं मिलेगा बल्कि उसको स्वाभाविक देह (शरीर) मिलेगा जिसे वह फिर कभी नहीं मरेगा । धर्मशास्त्र के अनुसार देह (शरीर) दो प्रकार के होते हैं - (1) स्वाभाविक देह (शरीर) (2) आत्मिक देह (शरीर) । स्वाभाविक देह (शरीर) में लोग नहीं मरते हैं और आत्मिक देह (शरीर) में लोगों को मरना पड़ता है । पहले लोग स्वाभाविक देह (शरीर) में थे । धर्मशास्त्र, 1 कुरिन्थियों 15 :44 में यह भविष्यवाणी किया गया है कि "स्वाभाविक देह (शरीर) बोई जाती है और आत्मिक देह जी उठती है। " जब स्वाभाविक देह (शरीर) है तो आत्मिक देह (शरीर) भी है । इन याद रखो कि वर्तमान समय में अर्थात इस मौजूद समय में हम और आप आत्मिक देह (शरीर) में हैं । इस वक्त हम सभी को स्वाभाविक देह (शरीर) को प्राप्त करना जरुरी है। धर्मशास्त्र, 1 कुरिन्थियों 15 :45 - 46 यह भविष्यवाणी करता है कि प्रथम मनुष्य अर्थात आदम जीवित प्राणी बना और अन्तिम आदम जीवनदायक आत्मा बना। परन्तु आदम पहले आत्मिक न था, पर स्वाभाविक था, इसके बाद वह आत्मिक हुआ । अर्थात आदम पहले आत्मिक देह (शरीर) में नहीं था बल्कि वह स्वाभाविक देह (शरीर) में था। बाद में वह आत्मिक देह (शरीर) में आगया ।
तुमसे मैं भेद की बात कहता हूँ कि हम सब तो नहीं सोएँगे परन्तु सब बदल जाएँगे। क्षण भर में पलक मारते ही पिछली तुरही फूकते ही होगा । क्योंकि तुरही फुकी जाएगी और मुर्दे अविनाशी दशा में उठाये जाएँगे और हम बदल जाएँगे । क्योंकि अवश्य है कि यह नाशवान देह अविनाश को पहन ले और यह मरनहार देह अमरता को पहन ले । जब यह नाशवान अविनाश को पहन लेगा, और यह मरनहार देह अमरता को पहन लेगा, तब वह वचन जो लिखा है, पूरा हो जाएगा कि जय ने मृत्यु को निगल लिया । (धर्मशास्त्र, 1 कुरिन्थियों 15 :51 -54) हम प्रभु वचन के अनुसार कहते हैं क्योंकि प्रभु आप ही स्वर्ग से उतरेगा, उस समय ललकार और प्रधान दूत का शब्द सुनाई देगा और परमेश्वर कि तुरही फूंकी जाएगी और जो ईश्वर में मरे हैं, वे पहिले जी उठेंगे । तब हम जो जीवित और बचे रहेंगे उनके साथ बादलों पर उठा लिए जाएँगे कि हवा में प्रभु से मिलें और इस रीती से हम सदा प्रभु के साथ रहेंगे । सो इन बातों से एक दूसरे को शांति दिया करो । (धर्मशास्त्र, 1 थिस्सलुनीकियों 4 :16 - 18)