परमेश्वर को धरती पर कल्कि नाम से क्यों आना पड़ा ?
ईश्वर पुत्र अरुण
परमेश्वर ने आदम और हव्वा को बनाया और उन्हें पति - पत्नी के रिस्ते में जोड़ कर पहली - पहली बार परिवार की शुरुआत की । उन्हें एक खूबसूरत घर दिया जिन्हें अदन बाटिका के नाम से जाना जाता है। लेकिन वह शैतान के बहकावे में आकर परमेश्वर की आज्ञा को भंग किया । इसका परिणाम यह हुआ कि (1) उसे परमेश्वर का दिखना बन्द हो गया । (2) उसके अंदर पहली बार डर उत्पन्न हुआ जबकि डर क्या होता है उसको नहीं मालूम था । (3) वह झाड़ी कि ओट में छिप गया । (4) वह वेचैनी मह्शूश करने लगा । (4) उसने अनंत जीवन को खो दिया । (5) उसे अदन बाटिका से भगा दिया गया । (6) वह जन्मने - मरने वाले शरीर में आगया। (7) उसे दुःख एवं पड़ेशानी की वादियों से गुजरना पड़ रहा है । (8) जन्मने - मरने वाले शरीर में आजाने के कारण ईश्वर से उसका संपर्क टूट गया । अब वह इन आँखों से परमेश्वर को न तो देख सकता था और न परमेश्वर कि बातें सुन सकता था । (9) पृथ्वी पर जितने भी मनुष्य हैं सब आदम और हव्वा के वंशज हैं । मनुष्यों के वंश पाप के कारण सबको जन्म लेना पड़ता है और मरना पड़ता है ।
परमेश्वर ने देखा कि मनुष्य का पतन यहाँ तक हो गया है कि अब वह निम्नतम श्रेणी के शरीर में आगया है और जन्म - मृत्यु के चक्र में फस चुका है और अब उसके लिए जन्म - मृत्यु चक्र से छूटना सम्भव नहीं है। परमेश्वर ने मनुष्यों को यह भी देखा कि वह बहुत दुखी एवं पड़ेशान है, उसको जन्म - मृत्यु के वादियों से होकर गुजरना पड़ता है; इसलिए उन्होंने निम्न श्रेणी के शरीर में आकर मनुष्यों से मिलने का निर्णय लिया और कल्कि नाम से धरती पर आगए। उन्होंने मनुष्यों को अनंत जीवन देने का फैसला किया और उनको दुःख, तकलीफ, पड़ेशानी एवं मृत्यु से बचने के लिए 17 वादा कर डाले जो निम्न प्रकार हैं :-
(1) ईश्वर ने वादा किया कि यदि तुम अपने ईश्वर को ढूंढोगे तो वह तुमको मिल जायेगा । (धर्मशास्त्र, व्यवस्थाविवरण 4:29)
(2) ईश्वर ने वादा किया कि उनका प्यार कभी कम नहीं होगा। (धर्मशास्त्र, 1 इतिहास 16:34)
(3) ईश्वर ने वादा किया कि उन सबके लिए मेरा आशीष है जो ईश्वर के युक्तियों पर चलता है और आनंदित होता है । (धर्मशास्त्र , भजन संहिता 1:1–3)
(4) ईश्वर ने वादा किया कि वे हमारे लिए लौट कर वापस आएंगे । (धर्मशास्त्र, यूहन्ना 14:2–3)
(5) ईश्वर तुम्हारे लिए लड़ेंगे और तुम शान्ति बनाये रहो या चुपचाप रहो।
(धर्मशास्त्र, निर्गमन 14:14)
(6) यह ईश्वर तेरे आगे - आगे चलनेवाल ईश्वर है, यह तेरे संग रहेगा, यह न तुझे छोड़ेगा और न तुझे धोखा देगा । (धर्मशास्त्र, व्यवस्थाविवरण 31:8)
(7) ईश्वर ने वादा किया कि मैं तुम्हारे संग रहूँगा, जहाँ कहीं तू जाएगा वहां तेरी रक्षा करूँगा । मैं अपने कहे हुए को जब तक पूरा न कर लूँ तब तक तुझको न छोडूंगा । (धर्मशास्त्र, उत्पत्ति 28:15)
(8) क्या मैंने तुम्हें आज्ञा नहीं दी ? हियाब बांधकर दृढ हो जाओ, भय न खा, तेरा मन कच्चा न हो,क्योंकि जहाँ तू जायेगा वहां - वहां तेरा परमेश्वर तेरे संग रहेगा । (धर्मशास्त्र, यहोशू 1:9)
(9) ईश्वर ने कहा कि जिस मार्ग में वह चलेगा मैं उनको निर्देश दूंगा और उनको शिक्षा दूंगा। अपने आँखों के आगे मैं उनको रास्ता दिखाऊंगा। (धर्मशास्त्र, भजन संहिता 32:8)
(10) तू अपनी समझ का सहारा न लेना बल्कि सम्पूर्ण मन से ईश्वर पर भरोसा रखना। उसी को स्मरण करके सब काम करना तब वह तेरे लिए सीधा मार्ग निकालेगा I (धर्मशास्त्र, नीति वचन 3:5-6)
(11) ईश्वर ने वादा किया कि जो कोई ईश्वर की बाट जोहते हैं, वे नया बल प्राप्त करते जायेंगे, वे उकाबों के जैसा उड़ेंगे, वे दौड़ेंगे, चलेंगे और नहीं थकेंगे (धर्मशास्र , यशायाह 40:31)
(12) जो कोई मेरी सब विधियों का करेगा, मेरी सब विधियों पर चलेगा वह जीवित रहेगा I (धर्मशास्त्र, यहेजकेल 18 :19 )
(13) जो कोई पाप करेगा वही मरेगा। (धर्मशास्त्र, यहेजकेल 18 :20 ) क्योंकि पाप की मजदूरी मृत्यु है। (धर्मशास्त्र, रोमियों 6 : 23 )
(14) ईश्वर ने वादा किया कि मैं तुम्हारे लिए शांति को नदी की तरह तथा धन को नदी के बाढ़ की तरह बहा दूंगा। (धर्मशास्त्र , यशायाह 66 : 12 )
(15) ईश्वर ने कहा कि पवित्र बनो क्योंकि मैं पवित्र हूँ। (धर्मशास्त्र, 1 पतरस 1 :16 ) चुकि मैं नहीं मरता, इसलिए तुम भी नहीं मरोगे। जो मुझ पर डिपेन्ड हो कर जीता है, वह अनंत काल तक न मरेगा। (धर्मशास्त्र, यूहन्ना 11 :26 )
(16) ईश्वर ने कहा कि जो कोई पुत्र को देखे और उस पर विश्वास करे तो वह अनन्त जीवन पाएगा। (धर्मशास्त्र, यूहन्ना 6 :40 )
(17 ) ईश्वर ने कहा कि मैं तुम्हें विज्ञान सहित ज्ञान - तत्वज्ञान (ब्रह्मज्ञान) का उपदेश करूँगा जिसको जानने के बाद और कुछ भी जानना शेष नहीं रह जाता है। (गीता 7 :2 ) इस ज्ञान को अपनाकर तुम जीते - जीते, बिना मरे, Without Death, जन्म मृत्यु से छूट कर मोक्ष को प्राप्त कर लोगे। (वेदांत दर्शन 3 ;3:47, 48) क्योंकि ब्रह्म ज्ञान ही परमात्मा की प्राप्ति और जन्म - मरण से छूटने का साधन है।