दिल की आवाज
ईश्वर पुत्र अरुण
हाथ में कलम लेकर मैं जब बैठता हूँ , दिलों का हाल तब कागज़ पर लिखता हूँ
एक सच जो निकलते नहीं जुवां से, कलम से लिखने को दिल बेवस कर देता है
यह सच है कि जिसके कंधे / सिर पर पिता का हाथ होता है
हकीकत वायां करता हूँ वह इस दुनियाँ में, सबसे सम्मानित इन्सान होता है
मान ले जो इस सच को उतार कर अपने ह्रदय में, पिता को नाज होता है उसी पुत्र पर
बाद बाकी सब हैं पानी के बुलबुले, जो कुछ दिन साथ रह कर बिछुड़ जाते हैं जमीं पर
आँसू को कहता हूँ हठ करके तू रुक जा अपने ही दायरे में, नहीं है कद्र तेरा जो बहो गालों पे
मुस्कुराना ही सीखो क्योंकि मुस्कराहट ही रखता है जिन्दा, हर समय हर किसी को जमीं पर
और, जितना ही उनमें गहरे देखने में मैं समर्थ हुआ, यौवन का सभी अहम,
एक प्रवचन से ज्यादा नहीं है यह जान गया
सोचता हूँ मरता तो है एक दिन सभी, पर मैं क्या करूँ ऐसा कि न मरुँ संसार में कभी
इन्हें जो किनारे मान कर समझ लेंगे, अपनी नौका को वे उस तट से बांधलेंगे ,
उपलब्ध हुआ यही अमृत है यह जान कर जो पी लेंगे,
हमेशा जिन्दा रहने वालों के लिस्ट में अपना नाम दर्ज करा लेंगे
और, जितना ही उनमें गहरे देखने में मैं समर्थ हुआ, यौवन का सभी अहम,
एक प्रवचन से ज्यादा नहीं है यह जान गया
सोचता हूँ मरता तो है एक दिन सभी, पर मैं क्या करूँ ऐसा कि न मरुँ संसार में कभी
इन्हें जो किनारे मान कर समझ लेंगे, अपनी नौका को वे उस तट से बांधलेंगे ,
उपलब्ध हुआ यही अमृत है यह जान कर जो पी लेंगे,
हमेशा जिन्दा रहने वालों के लिस्ट में अपना नाम दर्ज करा लेंगे