ईश्वर का अनन्त प्यार
ईश्वर पुत्र अरुण
मनुष्य का प्यार अनन्त प्यार नहीं है । जब मनुष्य दुःख, तकलीफ, कष्ट और पड़ेशानी में होता है तब वह ईश्वर को याद करता है । और जब ईश्वर उसे दुःख, तकलीफ, कष्ट और पड़ेशानी से बहार निकाल देते हैं तो वह मनुष्य ईश्वर को भूल जाता है। मनुष्य ने ईश्वर को याद करने के लिए तथा उनकी पूजा करने के लिए अनेक मंदिर बनाया, मस्जिद बनाया, गिरजाघर बनाया और उनके विश्वास ने ईश्वर को कण - कण में बसाया। परंतु मनुष्य दुःख, तकलीफ, कष्ट और पड़ेशानी से बहार निकलते ही ईश्वर को भुला दिया । किन्तु मनुष्य के प्रति ईश्वर का प्यार कम नहीं हुआ । ईश्वर ने कहा कि मैं तुझसे सदा प्रेम रखता आया हूँ । इस कारण मैंने तुझ पर अपनी करुणा बनाये रखी है । (धर्मशास्त्र, यिर्मयाह 31 :3) ईश्वर का प्यार अनन्त प्यार है । वह कभी ख़तम नहीं होने वाला प्यार है । वे हम लोगों को दया पूर्वक अपनी ओर आकृष्ट किए हैं जो कभी ख़त्म नहीं होगा। कभी - कभी जो अधिक उम्र के लोग हैं जिनको दूसरे लोगों ने त्याग दिया है और वे सभी अकेला हैं वे ईश्वर का सबसे प्रिय है । बल्कि यह समझिये कि ईश्वर हमेशा उनके साथ हैं। ईश्वर ने उनके लिए कहा कि "तुम्हारे बुढ़ापे में भी मैं वैसा ही बना रहूंगा और तुम्हारे बाल पकने के समय तक तुम्हें उठाए रहूंगा। मैंने तुम्हें बनाया और तुम्हें लिए फिरता रहूंगा । (धर्मशास्त्र, यशायाह 46 :4) अभी जिस तरह से तुम कर रहे हो ईश्वर तुम लोगों को प्यार करते हैं । उनका अनन्त प्यार हमेशा के लिए तुम्हारे साथ है । अभी वे जितना तुमसे प्यार करते उतना किसी भी तरह से तुम उनको प्यार करने के लिए प्रेरित नहीं कर सकते । मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि तुम ईश्वर के ज्ञान को प्राप्त करो और उनका जो तुम्हारे लिए अनन्त प्यार है उसको समझो ताकि तुम ईश्वर को अच्छी तरह से जान सको ।