आदिश्री अरुण फेथ में क्या है ब्रह्म-ज्ञान का मतलब ?
ईश्वर पुत्र अरुण
ब्रह्म ज्ञान या ब्रह्म विद्या या तत्व ज्ञान वह ज्ञान है जिसको जानने के बाद कोई भी ज्ञान जानने के लिए शेष नहीं रह जाता है। (गीता 7 :2) यह विज्ञानं सहित ज्ञान सब विद्याओं का राजा, सब गोपनीयों का राजा, अति उत्तम, अति पवित्र, प्रत्यक्ष फल वाला, धर्म युक्त साधन करने में बड़ा सुगम तथा अविनाशी है। (गीता 9 :2)वेदान्त दर्शन, पाद - 3, अध्याय - 3, श्लोक - 48, पेज o न o - 334 में कहा गया है कि यज्ञ आदि कर्मों का फल स्वर्ग लोक में जाकर वापस आना है और ब्रह्म ज्ञान का फल जन्म - मरण से छूट कर परमात्मा को प्राप्त हो जाना है।
वेदान्त दर्शन, पाद - 3, अध्याय - 3, श्लोक - 49, पेज o न o - 335 में कहा गया है कि ब्रह्म विद्याओं का उद्देश्य एक मात्र परब्रह्म परमात्मा का साक्षात्कार करा देना और और इस जीवात्मा को सदा के लिए सब प्रकार के दुखों से मुक्त कर देना है। ब्रह्म विद्या ही परमात्मा की प्राप्ति और जन्म - मरण से छूटने का साधन है। सकाम यज्ञ आदि कर्म नहीं।
वेदान्त दर्शन, पाद - 3, अध्याय - 3, श्लोक - 50, पेज o न o - 335 में कहा गया है कि वहाँ केवल सुख ही सुख है तथा वहाँ जाने के बाद पुनरावृति नहीं होती है, सदा के लिए जन्म - मरण से मुक्ति हो जाती है। जो योगो से सर्वथा विरक्त हो कर उस परब्रह्म परमात्मा को साक्षात्कार करने के लिए तत्पर है, उन्हें परमात्मा की प्राप्ति होने में विलम्ब नहीं हो सकता। शरीर के रहते - रहते यहीं परमात्मा का साक्षात्कार हो जाता है।
पूर्ण ब्रह्म की पूरी - पूरी जानकारी एक मात्र केवल ईश्वर पुत्र को ही होती है जिसको देवी ने अर्थात दुर्गा जी ने ईश्वर कहा ।देवी अर्थात दुर्गा जी यह भी बोली कि वह सर्वज्ञानी भी है, सबका उत्पादक भी है तथा सब पर कृपा करने वाला भी है। (श्रीमद्देवि भगवत)
देवी अर्थात दुर्गा जी यह भी बोली कि जिसके द्वारा ब्रह्म विद्या का उपदेश होता है वह परमेश्वर ही है । (श्रीमद्देवि भगवत, स्कंध - 7, अध्याय -36, पेज o न ओ - 565 ) श्री मद्भगवतम माह पुराण 11;11:18 में महर्षि वेद व्यास जी बोले - "ईश्वर ने कहा कि जो पुरुष वेदों का पारगामी विद्वान् हो, परन्तु परब्रह्म के ज्ञान से शून्य हो (अर्थात परब्रह्म का ज्ञान नहीं हो ) तो उसके परिश्रम का कोई फल नहीं है । वह तो वैसा ही है जैसे बिना दूध का गाय पलने वाला ।
उस पूर्ण ब्रह्म के बारे में कहा गया है कि अमरता केवल उसी की है और वह अगम्य ज्योति में रहता है । न तो उसे किसी मनुष्य ने देखा और न कभी देख सकता है। (धर्मशास्त्र, 1 तीमुथियुस 6:16)
गीता 11 :12 में कहा गया है कि आकाश में हजार सूर्यों को एक साथ उदय होने से उत्पन्न जो प्रकाश हो , वह भी उस परमात्मा का बराबरी नहीं कर सकता है।
गीता 13 :17 में कहा गया है कि वह परब्रह्म ज्योतियों का भी ज्योति एवं माया से अत्यंत परे है।
गीता 15 :6 में ईश्वर ने कहा कि "जिस परम पद को प्राप्त होकर मनुष्य संसार में लौट कर नहीं आते, उस स्वयं प्रकाश रूप परम पद को न सूर्य प्रकाशित कर सकता है, न चन्द्रमा और न अग्नि ही, वही मेरा परम धाम है । "
श्री गर्ग संहिता, अध्याय - 2, शीर्षक "व्यास जी के द्वारा गतियों का निरूपण " पेज o न o - 399 में उस जगह को वास्तविक गोलोक धाम कहा गया है । यह स्थान 100 करोड़ योजन ऊर्जा नदी के पार है । वहाँ न सूर्य का प्रकाश है, न चंद्रमा का और न अग्नि का ही।
सृष्टि रचना के पूर्व समस्त आत्माओं के आत्मा एक पूर्ण परमात्मा ही थे। वे ही आद्वितीय रूप से प्रकाशित हो रहे थे । (श्रीमद्भागवतम माह पुराण 3;5:23-24) न वहाँ कोई द्रष्टा था न दृश्य ।
गीता 7:4 - 6 के अनुसार पूर्ण ब्रह्म ने अपने आप को तीन अवयव में विभाजित किया -
(1) जड़ प्रकृति (महा विष्णु) Lower Energy
(2) चेतन प्रकृति (गर्वोदकासाई विष्णु) Higher Energy
(3) Super Soul (परमात्मा, ईश्वर, पहिलौठा, ईश्वर पुत्र, क्षीरदकोसाई विष्णु)
जड़ प्रकृति (महा विष्णु) Lower Energy से रचना का काम होता है । चेतन प्रकृति (गर्वोदकासाई विष्णु) Higher Energy से Function होता है और Super Soul (परमात्मा, ईश्वर, पहिलौठा, ईश्वर पुत्र, क्षीरदकोसाई विष्णु) जर्रे - जर्रे में समाया ।
Super Soul (परमात्मा, ईश्वर, पहिलौठा, ईश्वर पुत्र, क्षीरदकोसाई विष्णु) ने जड़ प्रकृति (महा विष्णु) Lower Energy और चेतन प्रकृति (गर्वोदकासाई विष्णु) Higher Energy से सारा जगत रचा। इसलिए ईश्वर ने गीता 7:6 में कहा कि "हे अर्जुन ! तू ऐसा समझ कि सम्पूर्ण भूत इन दोनों प्रकृतियों से ही उतपन्न होने वाले हैं और मैं सम्पूर्ण जगत का प्रभव तथा प्रलय हूँ अर्थात सम्पूर्ण जगत का मूल कारण हूँ। "
ब्रह्म विद्या या ब्रह्म ज्ञान या तत्व ज्ञान रहस्यमय होने के कारण माउथ टू माउथ दिया जाता है । इसे लिखित रूप में नहीं दिया जा सकता है। अतः इसे ईश्वर पुत्र - "आदिश्री अरुण जी के पास जाकर " प्राप्त किया जा सकता है। इस ज्ञान को प्राप्त करने के लिए ईश्वर ने गीता 4:34 में कहा कि "उस ज्ञान को तत्वदर्शी ज्ञानियों के पास जाकर समझ, उनको भलीभांति दंडवत - प्रणाम करने से, उनकी सेवा करने से और कपट छोड़ कर सरलता पूवर्क प्रश्न करने से वे परमात्मतत्व को भलीभांति जानने वाले ज्ञानी महात्मा तुझे उस तत्व ज्ञान का उपदेश करेंगे।