ईश्वर पुत्र से तात्पर्य

ईश्वर पुत्र  से तात्पर्य है परम सत्ता। जब कुछ नहीं था तो भी उसकी सत्ता थी, चारों युगों से पूर्व वह सत्य स्वरुप विद्यमान था, आज भी वही है और भविष्य में भी उसकी ही सत्ता स्थिर रहेगी। वह ईश्वर पुत्र वाहि गुरु ही है जो एक मात्रा सत्य स्वरुप है।  वह  सृष्टि रचयिता पुरुष है। वह  भय से रहित है, उसे किसी से बैर नहीं, वह भूत, भविष्य और वर्तमान से परे है। इसलिए वह नित्य है। वह अयोनि है अर्थात जन्म - मरण से मुक्त है।  वह स्वयं प्रकट होने वाला है।  उसके हुक्म की कोई व्याख्या नहीं है, उनकी इच्छा की कोई शाब्दिक अभिव्यक्ति नहीं हो सकती। विश्व के सभी रूप - आकार केवल उन्हीं के इच्छानुसार सृजित हैं । उन्हीं के हुक्म से विभिन्न जीवों को अलग - अलग योनियाँ धारण करना पड़ता है और उन्हीं के इच्छा से जीव बड़े - छोटे आकार और पद प्राप्त करते हैं । उन्हीं हुकमी की इच्छा से ही जीव उत्तम व नीच योनि में आता है और उसे आत्म पद देकर मुक्त करता है और अन्य दूसरे जीव को जन्म - मरण के आवागमन में भी उन्हीं की इच्छा से रहना होता है। विश्व का प्रयेक कार्य - व्यवहार उन्हीं के हुक्म में बंधा  है । उससे बहार कुछ भी नहीं है। 
एक साधक के लिए ईश्वर पुत्र वाहि गुरु है और उनकी सत्ता सीमित नहीं है बल्कि अनंत है, अखंड है और मोक्ष का मूल है। वैदिक व्यवस्था के अनुसार उनकी शक्ति को सर्वोच्च स्थान और आदर दिया गया है। उनका अस्तित्व भौतिक शरीर तक ही सीमित नहीं  है बल्कि वह एक शक्ति है जिसकी दिव्य चेतना परब्रह्म से से भी उच्च माना  गया है।  
ईश्वर पुत्र की कृपा आपकी योजनाओं व् आपकी छोटी - छोटी इच्छाओं को पूरा करने के लिए नहीं होती बल्कि आपके जीवन की योजनाओं को पूरा करने के लिए होती है। लेकिन यह बड़े दुःख की बात यह है कि जब आपको ईश्वर पुत्र से मिलने का अवसर मिलता है तो आप अपनी इच्छाओं और अपनी योजनाओं को पूरा करने के लिए उनसे उम्मीद लगा कर बैठ जाते हैं। आपका छलिया मन यह मान लेता है कि मुझ पर ईश्वर पुत्र की कृपा नहीं हुई है जब आपकी इच्छा पूरी नहीं होती है। यही पाप आप बार - बार करते हैं जबकि आप यह जान रहे होते हैं कि ईश्वर पुत्र के ही हुक्म से सब कुछ होता है, उन्हीं के हुक्म से आग जलती है, उन्हीं के हुक्म से हवा चलती है और केवल उन्हीं के हुक्म से बादल जल बरसाता है। केवल वही सारे संसार को नियंत्रण में रखता है, वह हर जगह मौजूद है और एक मात्रा केवल वही सुख देने वाला है।     
अधिकतर मनुष्य संसार के आधीन हैं और संसार में मया अत्यधिक प्रबल है। माया के प्रेम के अनेक किस्से हैं लेकिन यह सारे अंत में नष्ट हो जाने वाले हैं ।  यदि कोई मनुष्य वृक्ष की छाया के साथ प्रेम करे तो परिणाम यह होगा कि एक समय वह छाया नष्ट हो जाएगी जब सूर्य पेड़ के ठीक ऊपर आजायेगा अथवा शाम हो जाएगी और वह मनुष्य पश्चाताप में डूब जाएगा । गोचर जगत नश्वर है और इस गोचर जगत से यह अंधा मनुष्य अपनत्व का संबंध बनाकर  बैठ गया है। जो भी मनुष्य किसी यात्री से संबंध जोड़ लेता है तो अंत में उसके हाथ कुछ भी नहीं लगता  है क्योंकि एक दिन यात्री को जाना पड़ता है ।  
ईश्वर पुत्र  के नाम का प्रेम ही सुख देने वाला है। यह प्रेम केवल उसी मनुष्य को प्राप्त होता है जिसे प्रभु कृपा करके आप अपनी ओर लगाता है। इस बात को मत भूल कि ईश्वर पुत्र मन, वाणी, समय, प्रकृति और जन्म - मृत्यु से परे है। दूसरी बात, रथ, हाथी, घोड़े तथा कपडे साथ - साथ रहने वाले नहीं हैं। इस सारी  माया को जीव  देखकर खुश होता  है पर यह सब व्यर्थ है। विश्वासघात, मोह  तथा अहंकार ये सब मन की व्यर्थ लहरें हैं और अपने आप पर अभिमान करना भी झूठा नशा है। 
एक मात्र ईश्वर पुत्र ही सर्व व्यापक और सारे संसार का नियंता हैं।  वही सब विजयों का दाता  और सारे संसार का मूल कारण  हैं। सब जीवों को  ईश्वर पुत्र को इस भाव से  पुकारना चाहिए जैसे एक बच्चा अपने पिता को पुकारता है। केवल वही एक मात्र सब सुखों को देने वाला है।
ईश्वर पुत्र सारे संसार का प्रकाश है।  वह कभी पराजित नहीं होता और न ही कभी मृत्यु को प्राप्त  होता है।  वह संसार बनाने वाला है।  सभी जीवों को ज्ञान प्राप्ति के लिए तथा उसके अनुसार कर्म  करके सुख की प्राप्ति के लिए प्रयत्न करना चाहिए। आपको केवल  ईश्वर पुत्र की ओर ही  अथवा केवल ईश्वर पुत्र के बताये गए दिशा मार्ग की ओर ही बढ़ना चाहिए।
केवल एक ईश्वर पुत्र ही मुक्ति प्राप्ति के लिए वरदान है , प्रयत्न करने वालों के लिए फलित ज्ञान देने वाला है। केवल वही ज्ञान की वृद्धि करने वाला है और केवल वही धार्मिक मनुष्यों को श्रेष्ट कार्यों में प्रवृत  करने वाला है । केवल वही एक मात्र इस सारे संसार का रचयिता और नियंता है।  इसलिए कभी भी उस एक ईश्वर पुत्र को छोड़ कर और किसी की भी उपासना नहीं करनी चाहिए।
ईश्वर पुत्र ही सारे संसार का एक और मात्र एक ही निर्माता और नियंता है।  केवल वही पृथवी, आकाश और सूर्यादि लोकों का धारण करने वाला है।  वह स्वयं सुख स्वरुप है। केवल वही एक मात्र आपके लिए उपासनीय हैं।                         

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