मुक्ति-लाभ की ओर


सहनशीलता और एक - दूसरे के लिए अंतःकरण में   सम्मान की भावना से समाज में संतुलन कायम संभव है । मानव-देह ही सर्वश्रेष्ठ साधन  है, एवं मनुष्य ही सर्वोच्च प्राणी है, क्योंकि इस मानव - देह तथा इस जन्म में ही मुष्य  इस नाशवान  जगत् से संपूर्णतया बाहर निकल  सकते हैं – निश्चय ही वे मुक्ति की अवस्था प्राप्त कर सकते हैं, और यह मुक्ति ही उनका  अंतिम लक्ष्य है। वह जिस युग में जन्मा है, उससे उसे बहुत आगे जाना पड़ेगा, किन्तु साधारण लोग किसी तरह रेंगते-रेंगते ही आगे बढ़ते हैं। मुक्ति-लाभ के अतिरिक्त और कौन सी उच्चावस्था का लाभ है जिसको मनुष्य प्राप्त करेगा ?  
देवदूत कभी कोई बुरे कार्य नहीं करते, वह तो मुक्ति-लाभ करने की  आकांक्षा को जाग्रत करते हैं। केवल एक मात्र शब्द - सूरत योग ही है जो मुक्ति के लक्ष्य तक आपको पहुंचा सकता है इसके अलावा और दुसरा कोई साधन नहीं । मन का विकास करो और उसका संयम करो, उसके बाद जहाँ इच्छा हो, वहाँ इसका प्रयोग करो–उससे अति शीघ्र फल की प्राप्ति होगी। यह है यथार्थ आत्मोन्नति का उपाय। एकाग्रता सीखो, और जिस ओर इच्छा हो, उसका प्रयोग करो। ऐसा करने पर तुम्हें कुछ खोना नहीं पड़ेगा। जो समस्त को प्राप्त करता है, वह अंश को भी प्राप्त कर सकता है। इच्छा को किसी दूसरी ओर प्रयोग करने से पहले पहले स्वयं संपूर्ण मुक्तावस्था को प्राप्त कर लो, उसके बाद इच्छा करने पर फिर अपने को सीमाबद्ध कर सकते हो। लेकिन इतना याद रखो कि प्रत्येक कार्य में अपनी समस्त शक्ति का प्रयोग करो। किसी के साथ विवाद न करो मिल - जुल कर आगे बढ़ो - क्योंकि यह दुनिया भयानक है, किसी पर विश्वास नहीं किया जा सकता है। शब्द - सूरत योग का अभ्यास करो, अविनाशी लोक में जाने का अभ्यासी बनो । तूफ़ान मचा दो तूफ़ान, ताकि इस नश्वर जगत में भी तुम्हारी इच्छा पूर्ण हो, क्योंकि अनन्त काल के लिए जगत में तुम्हारी ही महिमा घोषित हो रही है एवं अनंत जीवन का  राज्य तुम्हारा ही  है। मैं तुमसे सच कहता हूँ कि  ऐसे लोगों से बचे जो तुम्हारे मुँह  पर तो मीठी बातें करते हैं, लेकिन तुम्हारे पीठ पीछे तुम्हें  बर्बाद करने की योजना बनाते हैं।  ऐसा करने वाले तो उस विष के घड़े के समान है जिसकी उपरी सतह दूध से भरी है।
आप ईश्वर में विश्वास तब तक नहीं कर पाएंगे जब तक आप अपने आप में विश्वास नहीं करते । विश्वास का विकास आपकोअपने भीतर से ही करना होता है। विश्वास न तो किसी पेड़ मेंफलते हैं कि आप उसे  पेड़ से तोड़कर ले आएँगे और न किसीदूकान में बिकती है  कि आप उसे खरीदकर लेआएँगे। विश्वास उत्पन्न होने के लिए आवश्यक है नजदीकियाँ । ईश्वर औरआपके बीच जितनी  अधिक नजदीकियाँ  बढ़ेगी आपके अंदरईश्वर में उतना ही अधिक विश्वास बढ़ेगा। आपके दिल के अंदर कोई विश्वास डाल नहीं देगा और न आपको कोई विश्वास करनासीखा देगा । यह तो दिल की उपज है। आप कितना भी कोशिशेंकर लीजिए आपको कोई आध्यात्मिक नहीं बना सकता। आपकोसिखाने वाला कोई और नहीं बल्कि  सिर्फ आपकी आत्मा ही है।ब्रह्माण्ड की  सारी शक्तियाँ पहले से ही आपकी है। वह आप ही हैं जो अपने आँखों पर पट्टी बाँध लेते हैं और फिर रोते हैं कि कितना अन्धकार है? मेरा परामर्श यह वयान करता  है कि  ईश्वर  ने आपके मष्तिष्क और व्यक्तित्व में  असीमित  शक्तियां और क्षमताएं दी हैं। इन शक्तियों कोविकसित करने  के लिए आपको ईश्वर की  प्रार्थना करनी चाहिए क्योंकि ईश्वर इन शक्तियों को विकसित करने  में आपकी मदद  करते हैं।ईश्वर ने मनुष्य को अपने समान बनाया लेकिन यह दुर्भाग्य है कि मनुष्य ने  भगवान को हर हमेशा अपने अनुसार बनाने की कोशिशों में जुटारहा ।  जिंदगी एक परीक्षा है । ज्यादातर लोग इसमें असफल हो जाते है क्योंकि वे दूसरों की नक़ल करते हैं । वे यह नहीं समझ पाते कि सबकेप्रश्नपत्र अलग-अलग होते हैं - ईश्वर पुत्र अरुण  

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