संधाशी हॉस्पिटल के सामने डॉक्टर विकास गुप्ता एवं श्री विजय कुमार जी (सी .इ. ओ.) के सौजन्य से कल्कि माह अवतार ध्यान योग एवं मानव उत्थान समिति के द्वारा आध्यात्मिक सम्मेलन आयोजित किया गया जिसमें आयुर्वेद, योग और अध्यात्म पर जम कर चर्चा हुई । जन कल्याण के लिए हेल्थ चेक अप हेतु फ्री कैम्प लाग्या गया तथा दवाइयां मुफ्त बाँटी गई ।
ईश्वर
पुत्र अरुण जी ने पुरातत्ववेत्ताओं
के अनुसार आयुर्वेद की उत्पत्ति ऋग वेद बताया लेकिन इसको चरक, सुश्रुत,कश्यप आदि मान्य ग्रंथों ने आयुर्वेद को अथर्व वेद का उप वेद मानते हैं ऐसा बताया। ईश्वर पुत्र ने आयुर्वेद को जीवन का ज्ञान कहा । उन्होंने आयुर्वेद की चर्चा करते हुए कहा कि जिस ग्रन्थ में हित आयु (जीवन के अनुकूल), अहित आयु (जीवन के प्रतिकूल), सुख आयु (स्वस्थ जीवन ) एवं दुःख आयु (रोग अवस्था ) का वर्णन हो उसे आयुर्वेद कहते हैं ।
उन्होंने आयुर्वेद के बारे में फिर कहा कि - जिस शास्त्र में आयु शाखा (उम्र का विभाजन ), आयु विद्या, आयु सूत्र, आयु ज्ञान, आयु लक्षण (प्राण होने के चिन्ह), आयु तंत्र (शारीरिक रचनाएँ शारीरिक क्रियाएं ) इत्यादि सम्पूर्ण विषयों की जानकारी मिलती है उसे आयुर्वेद कहते हैं ।
उन्होंने आयुर्वेद का आदि आचार्य अश्वनी कुमार कहा जिन्होंने आयुर्वेद में सबसे पहले सर्जरी किया था । उन्होंने दक्ष प्रजापति के धड़ में बकरे का सर जोड़ा था । इतना अडभान्स सर्जरी आज एलोपैथ में भी नहीं है ।
आयुर्वेद जगत में धन्मन्त्री को आयुर्वेद का आधार स्तम्भ माना जाता है । धन्मन्त्री की उत्पत्ति समुद्र मंथन से हुआ जो स्वर्ण अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे । भगवान विष्णु जी ने मोहिनी रूप धारण कर अमृत वितरण किया । अमृत वितरण के पश्चात् देवराज इन्द्र की प्रार्थना पर धन्मन्त्री जी ने देव - वैद्य का पद स्वीकार किया जिनका निवास स्थान अमरावती बना । काल क्रम से पृथ्वी पर मनुष्य रोगों से अत्यंत पीड़ित हो गए तब देवराज इंद्र जी ने धन्मन्त्री जी से प्रार्थना किये कि जान कल्याण के लिए आगे आएं । गरुड़ पुराण एवं मार्कण्डेय पुराण के अनुसार ईश्वर पुत्र ने बताया कि - वेद मंत्रो से अभिमंत्रित होने के कारण ही धन्मन्त्री वैद्य कहलाये थे । विष्णु पुराण के अनुसार धन्मन्त्री दीर्घतथा के पुत्र हैं ।विष्णु पुराण में यह बताया गया है कि वह धन्मन्त्री जरा विकारों से रहित देह और इन्द्रियों वाला तथा सभी जन्मों में सर्व शास्त्र ज्ञाता हैं।भगवान् नारायण ने उन्हें पूर्व जन्म में यह वरदान दिया था कि तुम कशी राज के वंश में उत्पन्न होकर आयुर्वेद का ८ भाग करोगे ।
आयुर्वेद के अनुसार शरीर में सब रोगों की उत्पत्ति वात, पित्त और कफ जैसे तीन मूल तत्वों में संतुलन बिगड़ने के कारण होता है और आयुर्वेद में इन्हीं तीनों तत्वों का संतुलन बना कर रोगों का उपचार किया जाता है । आयर्वेद का उद्देश्य स्वस्थ प्राणी के स्वास्थ्य की रक्षा करना तथा रोगी को रोग से रक्षा करना है सात ही साथ शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढा कर रोगों के आक्रमण से शरीर को बचाना है।
ईश्वर पुत्र अरुण जी ने कहा कि डॉक्टर विकास गुप्ता, डॉक्टर श्रीमती रजनी गुप्ता, डॉक्टर युवराज त्यागी एवं श्री विजय कुमार जी (सी. इ. ओ.) अपने टीम डॉक्टर को साथ लेकर आयुर्वेद को पुनर्जीवित करने आये हैं क्योंकि ईश्वर ने मनुष्य को स्वस्थ रहने के लिए आयुर्वेद चिकित्सा प्रणाली दिया एलोपैथ चिकित्सा प्रणाली नहीं । आयुर्वेद चिकित्सा प्रणाली वेद से प्रकट हुआ है और वेद भगवान का संविधान है। जो भगवान के संविधान के खिलाफ चलेगा वह दुःख भोगेगा और भगवान के सम्राज्य में कभी नहीं रह सकेगा ।
योग के सम्बन्ध में ईश्वर पुत्र अरुण जी ने कहा कि - योग ही एक मात्र ऐसी परिपूर्ण पद्धति है जो मनुष्य को शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक रूप से शक्तिशाली बनाती है । उन्होंने लोगों वही बात कहा जो बात द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण जी ने अर्जुन से कहा था - दुःख रूप योग से जो रहित है उसे योग कहते हैं और योग को धैर्य एवं उत्साह पूर्वक करना कर्तव्य है । उन्होंने कहा कि - योगः कर्मसु कौशलम अर्थात योग ही कर्मों में कुशलता है यानि कि कर्म बंधन से छूटने का उपाय है। योग केवल रोगों को दूर करने की प्रक्रिया नहीं है बल्कि योग का कार्य शरीर के समस्त रोगों को दूर कर, मस्तिष्क को तनाव से मुक्त कर, मन को पवित्र बना कर, आत्मा का ईश्वर से सम्बन्ध स्थापित करना है । मुर्ख लोग योग को केवल व्यायायाम तक ही सिमित कर दिया और लोगों के मन में योग के नाम पर केवल व्यायायाम करना सिखाया जबकि व्यायायाम तो योग का केवल एक अंग है ।
अध्यात्म के सम्बन्ध में लोगों को संबोधित करते हुए ईश्वर पुत्र ने कहा कि - मैं तुम्हें विज्ञान सहित तत्व ज्ञान दूंगा जिसको जानने के बाद संसार में कुछ भी जान्ने के लिए शेष नहीं रह जाता है । यह हाईयेस्ट क्वालिटी का ज्ञान है । यह विज्ञान सहित ज्ञान सब विद्याओं का राजा, सब गोपनीयों का राजा, अति पवित्र, अति उत्तम, प्रत्यक्ष फल वाला (अभी करो अभी रिजल्ट मिलेगा ), धर्म युक्त,साधन करने में बड़ा सुगम और अविनाशी है । उन्होंने सभी लोगों को तत्व ज्ञान अर्थात ब्रह्म ज्ञान दिया और लोगों से कहा कि - ब्रह्म ज्ञान (तत्व ज्ञान) वह ज्ञान है जिसके द्वारा लोग जीते - जीते, बिना मरे ब्रह्म को प्राप्त कर मुक्ति को प्राप्त कर लेता है ।
उन्होंने अंत में लोगों से कहा कि अब मैं मोड़ - मुकुट पहन कर तुम्हारे सामने नहीं आऊँगा, अब मैं तुम्हारे आगे गले में सर्प लपेट कर और हाथ में त्रिशूल लेकर नहीं आऊँगा । मैं तुम्हारे सामने इसी तरह साधारण मनुष्य रूप में आऊँगा। जो मुझको स्वीकार करेगा वह अनंत जीवन पायेगा और जो मुझको अस्वीकार करेगा वह दुनिया के मेले में खो कर नष्ट हो जाएगा ।