आदिश्री अरुण के 5 उपदेश


मनुष्य के कल्याण के लिए आदिश्री के निम्न लिखित 5 उपदेश हैं :

   (1)     माता, पिता, गुरु, स्वामी, भ्राता, का कभी भी  क्षण भर के लिए विरोध या अहित  नहीं करो ।

   (2)     शास्त्र पढ़कर भी लोग मूर्ख होते हैं। जो लोग शास्त्र के अनुसार अपना प्रति दिन के  व्यवहार में आचरण करता है वही वास्तव में  विद्वान  है।

   (3)     स्मृति पीछे दृष्टि डालती है और आशा आगे। बस इतना याद रखो कि आशा प्रयत्नशील मनुष्य का साथ कभी नहीं छोड़ती है। आशा अमर है और उसकी आराधना कभी निष्फल नहीं होती।

(4)     आशा एक नदी है, उसमें  इच्छा ही जल है, तृष्णा उस नदी की तरंगे हैं, आसक्ति उसके मगर हैं, तर्क वितर्क उसकी पक्षी हैं, मोह ही भंवर है और  भवरों के कारण ही  वह  नदी गहरी है, चिंता ही उसके ऊंचे - नीचे किनारे हैं । धैर्य  नदी  के किनारे पर वृक्ष है। जो  लोग धैर्य के वृक्षों को नष्ट करते हैं, वे निश्चित ही नष्ट होने के लिए उस जल में डूब जाते हैं । जो धैर्य रूपी पेड़ पर चढ़ जाते हैं वे  बड़ा ही आनंद पाते हैं।


(5)     उत्साह मनुष्य की भाग्य मापने का पैमाना है। उत्साह से बढकर कोई दूसरा बल नहीं है। उत्साही मनुष्य के लिए संसार में कोई भी वस्तु दुर्लभ नहीं है।

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