राघव के प्रश्न: आदिश्री अरुण जी के चरणों में मेरा प्रणाम स्वीकार हो। हम साधारण मनुष्य अक्सर किसी से नाराज़ हो जाते हैं या किसी को भी भला-बुरा कह देते हैं, पर संतो का स्वाभाव इसके विपरीत हमेशा सौम्य व् मधुर बना रहता है। वे न कभी किसी पर क्रोध करते हैं और न किसी को भला-बुरा कहते हैं । उनके इस अच्छे व्यवहार का रहस्य क्या है ? सबके साथ मेरा व्यवहार अच्छा किस प्रकार बना रह सकता है ? मुझे इस रहस्य को बताने की कृपा करें।
आदिश्री अरुण : राघव मैं तुमसे कुछ कहूं इससे पहले मेरे साथ घटी हुई एक घटना सुनो । तुम्हारे जैसा ही प्रश्न लेकर राजेश नाम का एक व्यक्ति मेरे पास आया और मुझसे जिद करने लगा कि "आपके इस अच्छे व्यवहार का रहस्य क्या है ?" क्योंकि वह स्वाभाव से थोड़ा क्रोधी था । मेरे जबाब नहीं देने के कारण वह फिर मुझसे पूछा - "गुरूजी, आप कैसे अपना व्यवहार इतना मधुर बनाये रखते हैं ? ना आप किसी पे क्रोध करते हैं और ना ही किसी को कुछ भला-बुरा कहते हैं ?”
मैंने उसे प्रेम से जबाब से दिया - " मुझे अपने रहस्य के बारे में तो नहीं पता, परन्तु मैं तुम्हारा रहस्य जानता हूँ। ” उसने मुझसे पूछा - “मेरा रहस्य ? उसने फिर नम्रता से मुझसे पूछा - "गुरु जी क्या है मेरा रहस्य ?” मैं दुखी होते हुए बोला - "तुम अगले एक हफ्ते में मरने वाले हो।"
कोई और कहता तो वह इस बात को मजाक में टाल सकता था, पर स्वयं मेरे मुख से निकली बात को कोई कैसे काट सकता था? इसलिए वह उदास हो गया और मेरा आशीर्वाद लेकर मेरे यहां से चला गया।
उस समय से उसका स्वाभाव बिलकुल बदल ही गया। वह हर किसी से प्रेम से मिलता और कभी किसी पर क्रोध नहीं करता। वह अपना ज्यादातर समय ध्यान और पूजा में लगाता। वह उन व्यक्ति के पास भी जाता जिससे उसने कभी गलत व्यवहार किया था और उनसे माफ़ी मांग लेता। देखते-देखते मेरी भविष्यवाणी को एक हफ्ते पूरे होने को आया । उसने सोचा कि चलो अब आखिरी बार गुरु जी के दर्शन कर आशीर्वाद ले आता हूँ । वह मेरे पास पहुंचा और बोला, ” गुरु जी, मेरे मरने का समय पूरा होने वाला है, कृपया मुझे आशीर्वाद दीजिये!”
मैंने जबाब दिया - “मेरा आशीर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ है।" मैंने फिर उससे पूछा कि "अच्छा, ये बताओ कि तुम्हारे पिछले सात दिन कैसे बीते ? क्या तुम पहले की तरह ही लोगों से नाराज हुए और उन्हें अपशब्द कहा ?” उसने जबाब दिया - “नहीं ! नहीं ! आदिश्री जी , बिलकुल नहीं। मेरे पास जीने के लिए सिर्फ सात दिन थे, इसलिए मैं बेकार की बातों में ये सात दिन कैसे गँवा सकता था? मैं तो सबसे प्रेम से मिला, और मैं जिन लोगों का कभी दिल दुखाया था उनसे माफी भी मांगी।”
मैं मुस्कुराकर बोला, “राजेश जी, यही तो मेरे अच्छे व्यवहार का रहस्य है।" मैं जानता हूँ कि मैं कभी भी मर सकता हूँ, इसलिए मैं हर किसी से प्रेमपूर्वक व्यवहार करता हूँ, और यही मेरे अच्छे व्यवहार का रहस्य है। तुम अभी नहीं मरोगे। अब तुमने अच्छे व्यवहार का रहस्य जान लिया है। इसलिए अब बाकी का शेष जीवन अच्छा बन कर बिताओ। राघव जी, तुम भी जब यह सोच लोगे कि मैं कभी भी मर सकता हूँ तो तुम्हारा भी व्यवहार मेरे जैसा अच्छा हो जाएगा ।