आदि श्री अरुण जी की 20 शिक्षाएँ



आदि श्री अरुण जी की निम्न लिखित 20 शिक्षाओं पर चलने वाला आदमी इसी शारीर में मुक्ति पाकर संसार में स्वछन्द  विचरण करता है :
(१) ईश्वर एक हैं ।
(२) हमेशा एक ही ईश्वर की अनन्य प्रेम एवं अनन्य भक्ति से उपासना करो। जो तुम कर्म करते हो, जो खाते हो, जो हवन करते हो, जो दान देते हो और जो तप करते हो वह सब एक  मात्र इसी ईश्वर को अर्पित करो। 
(३) ईश्वर सब जगह और सब प्राणी में मौजूद है।
(४) ईश्वर की निष्काम भाव से भक्ति करने वालों को किसी का भी भय नहीं रहता।
(५) हमेशा प्रसन्न रहो  तथा ईश्वर से अपने लिए क्षमा माँगो  ।
(६) भोजन शरीर को जिन्दा रखने के लिए जरुरी है परन्तु  कामना, अहंकार  और  लोभ - लालच बुरी वृति है ।
(७ ) अपनी कमाई का ‘दसवांश ’ (1/10) ईश्वर के भवन में दो तथा ‘दसवांश ’ (1/10) परोकार के लिए लगाओ एवं अपने समय का ‘दसवांश  समय ' ईश्वर का सिमरन  अथवा ईश्वर के कार्य के  लिए लगाओ ।
(८) यदि किसी को धन की अथवा कोई अन्य मदद की जरूरत है  तो  कदापि पीछे नहीं हटो ।
(९) सभी गलत कार्य मन से ही उपजते हैं । अगर मन परिवर्तित हो जाय तो  गलत कार्य रुक सकता है।
(१०) एक हजार बेकार  शब्दों से एक शब्द बेहतर है जो शांति लता है।
(११) अतीत पर ध्यान केन्द्रित मत करो, भविष्य का सपना भी मत देखो, वर्तमान समय पर ध्यान केंद्रित करो।
(१२) कभी मत सोचो  कि आत्मा के लिए कुछ असंभव है, ऐसा सोचना सबसे बड़ा अधर्म है। अगर कोई पाप है तो वो यही है - ये कहना कि "तुम निर्बल हो या अन्य निर्बल हैं।"
(१३) उस व्यक्ति ने अमरत्व प्राप्त कर लिया है, जो किसी  सांसारिक वस्तु से व्याकुल नहीं होता है।
(१४) जो मनुष्य इसी जन्म में मुक्ति प्राप्त करना चाहता है, उसे एक ही जन्म में हजारों वर्ष का काम करना  पड़ेगा।
(१५) जो महापुरुष प्रचार-कार्य के लिए अपना जीवन समर्पित कर देते हैं, वे उन महापुरुषों की तुलना में बहुत ही अच्छे  हैं, जो मौन रहकर पवित्र जीवन यापन करते हैं।
(१६) कठिन समय जीने की वजह से ही तुम पर आती  है। सांसारिक धक्का ही तुम्हें  जगाता है  । वही इस जगत स्वप्न  को भंग करने में सहायता पहुँचाता है। इस प्रकार के लगातार आघात ही इस संसार से छुटकारा पाने की अर्थात् मुक्ति-लाभ प्राप्त करने की इच्छा को जाग्रत करता  है।
(१७) उठो, जागो, मूर्ति पूजा मत करो  और संपूर्ण रूप से सूरत शब्द योग के द्वारा अपने स्वरूप को विकसित करो। ये तीनों लोक तुम्हारे पैरों के नीचे है। जड़  की कोई शक्ति नहीं, प्रबल शक्ति आत्मा की है। हे मनुष्य! डरो मत; तुम्हारा नाश नहीं हैं, यह संसार-सागर से पार उतरने का उपाय हैं। तुम बहादुर हो। हिचकने वाले पीछे रह जायेंगे और तुम कुद कर सबसे  आगे पहुँच जाओगे। जो अपना उद्धार पाने  में लगे हुए हैं, वे न तो    अपना उद्धार ही कर सकेंगे और न दूसरों का ही उद्धार कर सकेंगे ।
(१८) मन का विकास करो और उसका संयम करो।  उसके बाद जहाँ इच्छा हो वहाँ इसका प्रयोग करो तो उससे   अति शीघ्र फल की प्राप्ति होगी।
(१९ ) सभी मरेंगे - साधु या असाधु, धनी या दरिद्र - सभी मरेंगे। अतः पहले स्वयं संपूर्ण मुक्तावस्था प्राप्त कर लो।  उसके बाद प्रत्येक कार्य में अपनी समस्त शक्ति का प्रयोग करो।
(२०) परमेश्वर का विश्वासयोग्य बनो, परमेश्वर के सभी नियमों का पालन करो  तब तुम जीवित रहोगे ।       आध्यात्मिक दृष्टि से पूर्णरूपेण विकसित हो चुकने पर ही तुम बाहर निकलकर संसार में जीवन व्यतीत करो।

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