पविश्वनी जी का प्रश्न और आदि श्री का जबाब

पविश्वनी : आदि श्री अरुण जी के चरणों में बार - बार प्रणाम स्वीकार हो । आदि श्री जी, मेरी जिज्ञासा है मुक्ति पाने की परन्तु जिस सत्संग में मैं जाती हूँ वहाँ गुरु जी बताते  हैं कि मुक्ति पाने में चार जन्म लगते हैं - पहला जन्म गुरु घर जाऊँ ; दूसरा जन्म गुरु की सेवा करूँ ; तीसरा जन्म गुरु भक्ति करूँ ; चौथा जन्म नाम को पाऊँ ; पंचम जन्म फिर नहीं पाऊँ l मैं चार जन्म लेना नहीं चाहती हूँ l  क्या कोई ऐसा उपाय है कि इसी जन्म में मुझे मुक्ति मिल जाय ? यदि है तो मुझे बताने की कृपा करें l

आदि श्री अरुण : पविश्वनी जी, आपको मुक्ति पाने की तीब्र इच्छा है - यह जान कर मुझे काफी ख़ुशी हुई  l तुम्हारे गुरु जी ने तुमसे जो बात कही है वह अक्षरः सत्य है कि मुक्ति पाने में चार जन्म लगते हैं - पहला जन्म गुरु घर जाऊँ ; दूसरा जन्म गुरु की सेवा करूँ ; तीसरा जन्म गुरु भक्ति करूँ ; चौथा जन्म नाम को पाऊँ ; पंचम जन्म फिर नहीं पाऊँ l लेकिन यह भी सत्य है कि मेरे पास ऐसी युक्ति है कि तुम इसी जन्म में और इसी शारीर में मुक्ति पा लोगी l लेकिन यह अत्यनत रहस्यमय है l
रहस्य का अर्थ होता है छिपा हुआ या गुप्त। यदि छिपा हुआ न हो तो रहस्य कहा  ही न जायेगा।  लोगों को मुक्ति क्यों नहीं मिलती है ? क्योंकि मुक्ति को प्राप्त करने का तरीका गुप्त है। हे मेरे भाई! हे मेरी बहना ! देखो, नौका को तो जल में ही रहना है, किन्तु यदि जल नौका पर सवार हो जाय तो नौका डूब जाती है। ठीक उसी प्रकार मन को संसार में ही रहना है, किन्तु यदि मन को संसार के स्वरूप से हटा कर, मन को विषयों से हटा कर जब परमेश्वर में मिला  दिया जाता है तो तभी मुक्ति मिल जाती है।
यदि सांसारिक वस्तु या  सांसारिक  रुपया  सांसारिक विषय मन में आकर बैठ जाय तो मुक्ति कभी भी नहीं मिलेगी। जीवात्मा तन को छोड़ता है  किन्तु वह मन को साथ ले चलता है। इसलिए मन को संभालो। पूर्व जन्म का शरीर तो मर गया है किन्तु मन नया शरीर लेकर आया है। शरीर तो मरता है किन्तु मन नहीं मरता है। मन को मारने के लिए ही मैं आपको परमेश्वर का ध्यान, परमेश्वर का चिंतन, परमेश्वर के स्वरूप का मनन करने के लिए ही अभ्यास करने को कहता हूँ। परन्तु आपका मन रुपया, पैसा, व्यापार, सुख - दुःख और सांसारिक  वस्तु में फस जाता है।  इसलिए मैंने तुमसे कहा कि जो वस्तु तुमको बांध लेती है, अपने में फसा लेता है, उसको परमेश्वर को दान देदो। मेरी बात आप  मानते हैं  नहीं,  इसी कारण आपको मुक्ति नहीं मिलती है।
तुमको  प्राणायाम करने की जरूरत नहीं है। मन का निरोध होने पर मुक्ति अनायास ही मिल जाती है यह सच है किन्तु मन का निरोध तो तब होता है जब किसी का उसके द्वारा विरोध  होता है ।  इसलिए कहा जाता है कि दान यदि बायाँ हाथ दे तो दाहिना हाथ भी न जाने ताकि मन का विरोध न हो। बंधन में कौन है ? मन ।  विषयों का बार - बार चिंतन करते रहने से मन उसमें फस जाता है और बंध जाता है। इसलिए मुक्ति  नहीं मिलती है । इसके लिए तुमको सूरत शब्द योग सिखने की जरुरत है । सूरत को शब्द में मिलाने की कला  को सिखना होगा । सूरत शब्द योग ही एक ऐसा ज्ञान है जिसको जानकर तुम इसी जन्म में इसी शारीर  में मुक्ति मिलजाएगी इसमें थोड़ा भी संदेह नहीं है ।    

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