संसार में सबसे पहले प्रेम परमेश्वर ने मनुष्य से किया। इसलिए मनुष्य परमेश्वर से प्रेम करता है। (धर्मशास्त्र ,१ यूहन्ना ४:१९) देखो परमेश्वर ने मनुष्य से कैसा प्रेम किया है कि मनुष्य परमेश्वर की सन्तान कहलाते हैं । (धर्मशास्त्र ,१ यूहन्ना ३:१)परमेश्वर ने कहा कि मेरी आज्ञा यह है कि "जैसा मैंने तुमसे प्रेम किया वैसा ही प्रेम तुम भी एक दूसरे से करो। " (धर्मशास्त्र , यूहन्ना १५:१२) इसलिए धर्मशास्त्र, १ यूहन्ना ४ : ७ - ८ में यह भविष्यवाणी किया गया है कि "हम आपस में प्रेम रखें क्योंकि परमेश्वर प्रेम से है और जो कोई प्रेम करता है वह परमेश्वर से जन्मा है और परमेश्वर को जानता है। जो प्रेम नहीं रखता, वह परमेश्वर को नहीं जानता।" धर्मशास्त्र, १ यूहन्ना ४:१६ में प्रेम के विषय में यहाँ तक कहा गया है कि परमेश्वर प्रेम है और जो परमेश्वर में बना रहता है,परमेश्वर भी उसमें बना रहता है।
प्रेम की महिमा बहुत गायी गई है। प्रेम में भय नहीं होता है। प्रेम भय को दूर करता है। प्रेम मनुष्यों या परमेश्वर एवं मनुष्यों के बीच की दूरियाँ को कम करता है। प्रेम नजदीकियाँ लाती है। प्रेम मानसिक सुख प्रदान करता है। दुःख व तकलीफ मानसिक तनाव उतपन्न करता है लेकिन प्रेम मानसिक तनाव को दूर करता है। प्रेम डिप्रेशन को दूर करता है। प्रेम चिंता को दूर करता है। प्रेम आनंदमय जीवन प्रदान करता है। प्रेम से असन्तोष ख़त्म होता है। प्रेम अनंत सुख प्रदान करता है। प्रेम ही सुख है, प्रेम ही सुन्दर, प्रेम ही जीवन है और प्रेम ही परमेश्वर है।
प्रेम की महिमा बहुत गायी गई है। प्रेम में भय नहीं होता है। प्रेम भय को दूर करता है। प्रेम मनुष्यों या परमेश्वर एवं मनुष्यों के बीच की दूरियाँ को कम करता है। प्रेम नजदीकियाँ लाती है। प्रेम मानसिक सुख प्रदान करता है। दुःख व तकलीफ मानसिक तनाव उतपन्न करता है लेकिन प्रेम मानसिक तनाव को दूर करता है। प्रेम डिप्रेशन को दूर करता है। प्रेम चिंता को दूर करता है। प्रेम आनंदमय जीवन प्रदान करता है। प्रेम से असन्तोष ख़त्म होता है। प्रेम अनंत सुख प्रदान करता है। प्रेम ही सुख है, प्रेम ही सुन्दर, प्रेम ही जीवन है और प्रेम ही परमेश्वर है।