परमेश्वर ने मनुष्य को जीवन देने का वादा क्यों किया ?



परमेश्वर ने जितने चीजों को बनाया उस सबको देखा कि सब अच्छा है किन्तु परमेश्वर की नजर में सभी रचनाओं में से सबसे अच्छी रचना मनुष्य था। परमेश्वर ने उस मनुष्य को आदम कहा। इसके बाद परमेश्वर ने सोचा कि आदम को अकेला रहना अच्छा नहीं है इसलिए उसके लिए मैं एक सहायक बनाऊँगा जो उससे मेल खाए। इसलिए परमेश्वर ने आदम का एक पंसुली निकाल कर उसमें मांस भर दिया और उसको स्त्री बना दिया और आदम  के पास ले आया। आदम ने  कहा  कि चुकि यह मेरी हड्डियों में की हड्डी और मेरे मांस का मांस है इसलिए  इसका नाम नारी होगा। लेकिन परमेश्वर की नजर में जो परमेश्वर का सबसे अच्छी रचना थी उसने एक आजादी के लिए परमेश्वर की आज्ञा को तोड़  दिया। परमेश्वर की आज्ञा को तोड़ने के कारण ही मनुष्यों के ऊपर दुःख और विपत्ति आ गया। परमेश्वर ने आदम और हव्वा को श्राप दिया। इतना ही नहीं  परमेश्वर ने  आदम और हव्वा को उस अदन वाटिका से निकाल दिया जिसमें जीवन के पेड़ का फल था। श्राप के कारण ही वे दोनों जीवन के पेड़ के फल को नहीं खा सके। जीवन के पेड़ के फल को नहीं खा सकने के कारण उन दोनों के जीवन में मृत्यु आया।
परमेश्वर की आज्ञा को भंग करने के कारण उन दोनों के जीवन में महान दुःख आगया जिसका हल आदम और हव्वा के पास नहीं था। इसी  महान दुःख के डर से वे दोनों जीवन के पेड़ के फल को नहीं खा पाये । परमेश्वर ने   देखा कि  मनुष्य बहुत दुःख पा रहा है इसलिए परमेश्वर मनुष्य बन कर धरती पर आये। उन्होंने मनुष्य से कहा  कि तुम्हें अब जीवन के पेड़ के फल की जरूरत नहीं  है क्योंकि मैं तुम्हें जीवन दूंगा। परमेश्वर ने देखा कि कलियुग के लोग मेरी बातों पर विश्वास नहीं करेंगे; वे इसका प्रमाण मांगेंगे इसलिए उन्होंने अपने दूत को भेज कर इस बात को धर्मशास्त्र में लिखवाया ताकि जब धरती के लोग प्रमाण मांगेंगे तो इसको प्रमाणित किया जा सके। वह कौन सी बात  लिखावायी  गयी  थी  ? क्या आपको मालुम है ? अगर नहीं मालूम है तो जानिये कि वह बात जो लिखवाया  गया था, वह  निम्नलिखित है  -
"परमेश्वर ने कहा कि पुनरुत्थान और जीवन मैं ही हूँ। जो कोई मुझ पर विश्वास करता है वह यदि मर भी जाए तौभी जीएगा। " (धर्मशास्त्र, यूहन्ना ११:२५)
परमेश्वर ने मनुष्य से वादा  किया कि मैं जीवन लेकर आऊँगा और मृत्यु को नाश करूंगा। उन्होंने मनुष्य से यह कहा कि देख, मैं द्वार पर  खड़ा हुआ खटखटाता हूँ; यदि कोई मेरा शब्द सुनकर द्वार खोलेगा तो मैं उसके पास भीतर आकर उसके साथ भोजन करूंगा। (धर्मशास्त्र, प्रकाशितवाक्य  ३ :२०)
मैं परमेश्वर का पुत्र अरुण इस बात की गवाही देता हूँ कि "उस जीवन के विषय में जो आदि से था, जिसे मैंने सुना और जिसे मैंने अपनी आँखों से देखा और हाथों से छुआ उसकी मैं गवाही देता हूँ और मैं आप लोगों को उस अनंत जीवन का समाचार  देता हूँ जो परमेश्वर के साथ था और अब मुझ पर प्रकट   हुआ है । 

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