भगवान विष्णु के अवतार
(ईश्वर पुत्र अरुण)सृष्टि के आदि में श्री भगवान ने लोकों के निर्माण कि इच्छा की । इच्छा होते ही उन्होंने अपने आपको तीन रूपों में प्रकट किया - (1) महा विष्णु (जड़ प्रकृति Lower Energy), (2) गर्वोदकासयी विष्णु (चेतन प्रकृति Higher Energy), (3) क्षीरदकोसाई विष्णु - परमात्मा / पहिलौठा, ईश्वर, ईश्वर पुत्र, पूर्ण ब्रह्म का प्रतिरूप (Super Soul)
जड़ प्रकृति (Lower Energy) से रचने का काम होता है, चेतन प्रकृति (Higher Energy)) से रचना फंक्शन करता है तथा गर्वोदकासयी विष्णु - परमात्मा / पहिलौठा, ईश्वर, ईश्वर पुत्र, पूर्ण ब्रह्म का प्रतिरूप (Super Soul) ही पूरी सृष्टि को रचने का काम करता है, केवल ये ही जर्रे - जर्रे में समाया अर्थात केवल ये ही सम्पूर्ण जगत का मूलकारण हैं । भगवान का यही पुरुष रूप जिसे नारायण कहते हैं, अनेक अवतारों का अक्षय कोष है - इसी से सारे अवतार प्रकट होते हैं । इस रूप के छोटे से छोटे अंश से देवता, पशु, पक्षी, और मनुष्य आदि योनियों की उत्पत्ति होती है। भगवान विष्णु के निम्न लिखित अवतार हैं :-
(1) इन्हीं प्रभु ने सबसे पहले कौमारसर्ग में सनक, सनन्दन, सनातन और सनत्कुमार चार ब्रह्मणों के रूप में अवतार धारण किया तथा अत्यंत कठिन ब्रह्मचर्य का पालन किया।
भगवान विष्णु का पहला अवतार सनक, सनन्दन, सनातन और सनत्कुमार चार ब्राह्मण हैं ।
(2) भगवान विष्णु का दूसरा अवतार सूकर रूप है । इन्होंने संसार के कल्याण के लिए समस्त यज्ञों के स्वामी उन भगवान ने ही रसातल में गई हुई पृथ्वी को निकलने के विचार से सूकर रूप ग्रहण किया ।
(3) ऋषियों की सृष्टि में उन्होंने देवर्षि नारद के रूप में तीसर अवतार ग्रहण किया और सात्वत तंत्र का (जिसे ' नारद - पांचरात्र ' कहते हैं) उपदेश किया ; उसमें कर्मों के द्वारा किस प्रकार कर्म बंधन से मुक्ति मिलती है, इसका वर्णन है।
(4) इन्होंने धर्म पत्नी मूर्ति के गर्भ से नर-नारायण के रूप में अवतार लिया । इस अवतार में उन्होंने ऋषि बनकर मन और इन्द्रियों का सर्वथा संयम करके बड़ी कठिन तपस्या की।
(5) पांचवें अवतार में वे सिद्धों के स्वामी कपिल के रूप में प्रकट हुए और तत्वों का निर्णय करने वाले सांख्य-शास्त्र का, जो समय के फेर से लुप्त होगया था, आसुरी नामक ब्राह्मण को उपदेश किया।
(6) अनसूया के वर मांगने पर छठे अवतार में वे अत्रि की संतान - दत्तात्रेय हुए । इस अवतार में उन्होंने अलर्क और प्रह्लाद आदि को ब्रह्म - ज्ञान का उपदेश किया।
(7) सातवीं बार रूचि प्रजापति की आकूति नामक पत्नी से यज्ञ के रूप में उन्होंने अवतार ग्रहण किया और अपने पुत्र याम आदि देवताओं के साथ स्वायम्भु मन्वन्तर की रक्षा की।
(8) राजा नाभि की पत्नी मेरु देवी के गर्भ से ऋषभदेव के रूप में भगवान ने 8 वां अवतार ग्रहण किया । इस रूप में उन्होंने परमहंसों का वह मार्ग, जो सभी आश्रमियों के लिए वन्दनीय है, दिखाया ।
(9) ऋषियों की प्रार्थना से नौवीं बार वे राजा पृथु के रूप में अवतीर्ण हुए । इस अवतार में उन्होंने पृथ्वी से समस्त औषधियों का दोहन किया था, इससे यह अवतार सबके लिए कल्याणकारी हुआ।
(10) चाक्षुष मन्वन्तर के अंत में जब सारी त्रिलोकी समुद्र में डूब रही थी, तब उन्होंने मत्स्य के रूप में दसवां अवतार लिया और नौका पर बैठा कर अगले मन्वन्तर के अधिपति वैवस्वत मनु की रक्षा की ।
(11) जिस समय देवता और दैत्य समुद्र मंथन कर रहे थे, उस समय ग्यारहवां अवतार धारण करके कच्छप रूप से भगवान ने मंदराचल को अपनी पीठ पर धारण किया ।
(12) बारहवीं बार धन्वंतरि के रूप में अमृत लेकर समुद्र से प्रकट हुए।
(13) तेरहवीं बार मोहिनी रूप धारण करके दैत्यों को मोहित करते हुए देवताओं को अमृत पिलाया ।
(14) चौदहवें अवतार में उन्होंने नरसिंह रूप धारण किया और अत्यंत बलवान दैत्यराज हिरणकश्यपु की छाती अपने नखों से अनायास इस प्रकार फाड़ डाली, जैसे चटाई बनाने वाला सींक को चीर डालता है।
(15) पंद्रहवीं बार वामन का रूप धारण करके भगवान दैत्यराज बलि के यज्ञ में गए। वे चाहते तो थे त्रिलोकी का राज्य, किन्तु मांगी उन्होंने केवल तीन पग पृथ्वी ।
(16) सोलहवें परशुराम अवतार में उन्होंने देखा कि राजा लोग ब्राह्मणों के द्रोही हो गए हैं, तब क्रोधित होकर उन्होंने पृथ्वी को इक्कीस बार क्षत्रियों से शून्य कर दिया।
(17) सत्रहवें अवतार में सत्यवती के गर्भ से परासर जी के द्वारा वे व्यास के रूप में अवतार लिए , उस समय लोगों कि समझ और धारणाशक्ति कम देख कर अपने वेद को कई भाग में बाँट दी ।
(18) अठारहवीं बार देवताओं का कार्य संपन्न करने कि इच्छा से उन्होंने राजा के रूप में रामावतार ग्रहण किया और सेतु बंधन, रावणवध आदि वीरतापूर्ण बहुत सी लीलाएं की।
(19) उन्नीसवें अवतार में उन्होंने यदु वंश में बलराम और
(20) बीसवें अवतार में उन्होंने श्रीकृष्ण नाम से प्रकट होकर पृथ्वी का भार उतरा ।
(21) उसके बाद कलियुग आ जाने पर मगध देश (बिहार) में देवताओं के द्वेषी दैत्यों को मोहित करने के लिए अजान के पुत्र रूप में उन्होंने बुद्धा अवतार लिया ।
(22) कलियुग के अंत में उन्होंने मरू के रूप में अवतार लिया और
(23) देवापि के रूप में अवतार लिया ।
(24) जगत के रक्षक भगवान विष्णुयश नामक ब्राह्मण के रूप में कल्कि अवतार लिया ।