परमेश्वर की व्यवस्था में सबसे पहला काम है पमेश्वर के वचन को सुनना दूसरा काम है उनके वचन को स्वीकार करना और तीसरा काम है उनके वचन का अपने दैनिक जीवन में पालन करना ।
जो व्यक्ति रात - दिन परमेश्वर की व्यवस्था पर ध्यान करते रहता है और अपने जीवन को परमेश्वर की व्यवस्था पर नियंत्रित रख कर कार्य करता है वह प्रसन्न रहता है ।(धर्मशास्त्र, भजन संहिता 1:2-3)
परमेश्वर ने कहा कि धन्य हैं वो पुरुष जो दुष्टों कि युक्ति पर नहीं चलता और न पापियों के मार्ग में खड़ा होता और न ठट्ठा करने वाले मंडलियों में खड़ा होता है। (धर्मशास्त्र, भजन संहिता 1:1) परन्तु सबने उस बातों पर कान नहीं लगाया यशायाह कहता है कि हे प्रभु ! किसने हमारे प्रचार की प्रतीति की है ? यानी कि किसने हमारे प्रचार पर विश्वास किया है ? सो विश्वास सुनने से और और परमेश्वर के वचन से होता है । (धर्मशास्त्र, रोमियों 10:16-17) विश्वास आशा की हुई वस्तुओं का निश्चय और अनदेखी वस्तुओं का प्रमाण है क्योंकि विश्वास से ही जाने जाते हैं कि सारी सृष्टि की रचना परमेश्वर के वचन के द्वारा हुई है । यह नहीं कि जो कुछ देखने में आता है , वह देखि हुई वस्तुओं से बना हो। (धर्मशास्त्र, इब्रानियों 11:1-3)
परमेश्वर का वचन आपके सामने खुशीयाँ, आनंद और जीवन लेकर आता है। लोगों ने कहा कि "जब तेरे वचन मेरे पास पहुंचे तब मैंने मानो उन्हें खा लिया और तेरे वचन मेरे मन के हर्ष और आनंद का कारण हुई क्योंकि हे परमेश्वर मैं तेरा कहलाता हूँ। " (धर्मशास्त्र, यिर्मयाह 15:16)
मनुष्य केवल रोटी से ही जीवित नहीं रहता, परंतु जो - जो वचन परमेश्वर के मुख से निकलते हैं उन्हीं से जीवित रहता है। (धर्मशास्त्र, व्यवस्थाविवरण 8:3)
परमेश्वर ने कहा कि "मनुष्य केवल रोटी से ही नहीं परंतु हर एक वचन से जो परमेश्वर के मुख से निकलता है, जीवित रहेगा। (धर्मशास्त्र, मत्ती 4:4)
आत्मा तो जीवनदायक है, शरीर से कुछ भी लाभ नहीं; जो बातें मैंने तुमसे कही है वे आत्मा हैं और जीवन भी है। (धर्मशास्त्र, यूहन्ना 6:63)
धर्मशास्त्र ने परमेश्वर के वचन के सम्बन्ध में कहा कि परमेश्वर का वचन जीवित, प्रबल और हर दोधारी तलवार से भी बहुत चोखा है जो जीव, आत्मा को और गांठ - गांठ को, गूदे - गूदे को अलग करके, आर -पर छेदता है, वह मन की भावनाओं और विचारों को जाँचता है। (धर्मशास्त्र, इब्रानियों 4:12)
बहुत सारी प्रतिज्ञाएं परमेश्वर ने किया है और इस वहां के द्वारा परमेश्वर आपसे बात करेंगे। इसलिए आपको परमेश्वर के वचन को पढ़ना चाहिए, आपको परमेश्वर के वचन को सुनना चाहिए ताकि आप जीवन, शांति और सुख को प्राप्त करें - ईश्वर पुत्र अरुण