प्रसन्नता की खोज सबको रहती है लेकिन बुद्धिमान ही प्रसन्नता को प्राप्त कर पाते हैं । लेकिन वर्तमान समय में बुद्धिमान लोग भी प्रसन्न नहीं हैं । कहा यह जाता है कि जिसके भ्रम का नाश हो जाय वह बुद्धिमान है। दुनिया के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि मूर्ख और कट्टरपंथी खुद को लेकर बिल्कुल दृढ होते हैं और बुद्धिमान लोग संदेह से भरे होते हैं। किन्तु संदेह विहीन आदमी ही प्रसन्नता को प्राप्त कर सकते हैं। क्या आपको प्रसन्न रहना अच्छा लगता है ? यदि आपके जीवन का उद्देश्य प्रसन्न रहना है तो यह जान लीजिए कि प्रसन्नता पहले से निर्मित कोई चीज नहीं है। ये आप ही के कर्मों से आती है और अपने प्रसन्नता से पुनः जुड़ने से महत्त्वपूर्ण और कुछ भी नहीं है। प्रसन्नता ऐसी घटनाओं की निरंतरता है जिनका हम विरोध नहीं करते। हमारी सोच और हमारा व्यवहार हमेशा किसी प्रतिक्रिया की आशा में होते हैं इसलिए ये डर पर आधारित हैं परन्तु प्रसन्नता पहले से निर्मित कोई डर, भय या कोई ब्रेन केमिस्ट्री नहीं है क्योंकि सोचना ब्रेन केमिस्ट्री का अभ्यास है। इस क्षण आपको अपने जीवन में जो भी सम्बन्ध आकर्षित किये हैं, ठीक वही इस क्षण आपके जीवन में आवश्यक है । हर घटना के पीछे एक अर्थ छिपा है और यह छिपा अर्थ आपके अपने विकास में सहायता कर रहा है । अपने जीवन काल में आप दयालु बने रहिये क्योंकि यह हमेशा संभव है। यदि आप स्वयं प्रसन्न रहना चाहते हैं तो दयालुता का भाव बनाएं रखें । यदि आप दूसरों को प्रसन्न देखना चाहते हैं तो भी दयालुता का भाव बनाएं रखें । प्रेम और दयालुता आवश्यकताएं हैं, विलासिता नहीं । उनके बिना मानवता जीवित नहीं रह सकती है। ईश्वर का दर्शन दयालुता है और ईश्वर के दर्शन के लिए मंदिरों की आवश्यकता नहीं है। बस आपके अंदर दयालुता रहनी चाहिए। मैं उनसे प्रेम करता हूँ जो मुसीबत में मुस्कुरा सकें , जो संकट में शक्ति एकत्रित कर सकें, जो आत्मचिंतन से साहसी बन सकें और व्यवहार में दयालुता बनाए रखे ....... आदिश्री अरुण
प्रसन्नता की ओर
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