आज परमेश्वर की जो ख्वाईश है उसको ईश्वर पुत्र अरुण ने निम्न प्रकार से स्वर्णिम अक्षरों में वयान किया है :
(१) पौ फटते ही मैं तुम्हारी सहायता करूँ।
(२) जो अंत समय तक धीरज धरे उसीका मैं उद्धार करूँ।
(३) जिसकी लज्जा की चर्चा सारी पृथ्वी पर फैली है उसकी प्रसंशा और कीर्ति मैं सब जगह फैला दूँ।
(४) मेरे नाम में बने रहने के कारण जितना तुम खो दिए हो उसका मैं दुगुना दूँ।
(५) मेरे द्वारा तेरी आयु बढ़े और तेरे जीवन के वर्ष अधिक हों।
(६) यदि तुम बुद्धिमान हो तो बुद्धि का फल तू ही भोगे। यदि तुम ठट्ठा करे तो उसका दण्ड केवल तू ही भोगे।
(७) तुम बुद्धिमान बनो क्योंकि बुद्धिमान मनुष्य विपत्ति को आते देख छिप जाते हैं परन्तु भोले लोग आगे बढ़ते चले जाते हैं और वे हानि उठाते हैं।
(८) जो मेरे दृष्टि में जो अच्छा है उसको मैं बुद्धि, ज्ञान और आनन्द देता हूँ और पापी को दुःख भरा काम।
(९) जो मेरी आज्ञा को माने वह जोखिम से बचा रहे।
(१०) जो प्राणी पाप करे वही मरे।
(११) जो मेरी सब आज्ञाओं को और सब विधियों का पालन करे केवल वही जीवित रहे।
(१२) मनुष्य अपने उत्सव के पर्व अपने - अपने समय पर मनाते जाय।
(१३) मनुष्य अपने उत्सव के पर्व में सभा को आयोजित करे और सभा में लोगों को आमंत्रित करे।
(१४) मनुष्य परमेश्वर के भवन में दसमांश अनिवार्य रूप से दिया करे ताकि परमेश्वर का अपरम्पार आशीष उसको मिलता रहे ।
(१५) जब धर्मी मनुष्य अपने धर्म से फिर कर टेढ़े काम करे या दुष्ट के जैसा घृणित काम करे तो उसने अपने जीवन में पहले जितने धर्म के काम किये हों उनको मैं कभी स्मरण न करूँ। उस टेढ़े काम, दुष्ट के जैसा घृणित काम करने के कारण वह मर जाए।
(१६) सभी लोगों के मन में प्यार की गंगा बहे क्योंकि यही धर्म की रीत है।
यदि परमेश्वर के उपरोक्त १६ इच्छाओं पर चलोगे तो तुम सर्वदा बने रहोगे। क्योंकि मैं तुमसे सच कहता हूँ कि संसार और उसकी अभिलासा दोनों मिट जायेंगे पर जो परमेश्वर की इच्छा पर चलेगा वह सर्वदा बना रहेगा। (धर्मशास्त्र, १ यूहन्ना २:१७) परमेश्वर की इच्छाओं पर चलने वालों में से किसी का भी नाश नहीं होगा। परमेश्वर ने कहा कि चुकि मैं जीवित हूँ इसलिए तुम भी जीवित रहोगे। (धर्मशास्त्र, यूहन्ना १४:१९)