परमेश्वर ने कहा कि कबीर दास जी तथा गुरुनानक जी इत्यादि गुरुओं को धरती पर भेजने के बाद मैंने धरती पर किसी को गुरु के रूप में नहीं भेजा। वर्तमान युग के कहलाने वाले गुरु बिना मेरी आज्ञा पाए मेरे नाम से झूठे वचन कहते हैं। ये भविष्यवक्ता बन बैठे हैं और मुझसे बिना आज्ञा पाये भविष्यवाणी करते हैं। ये भविष्यवक्ता बिना मेरे भेजे दौड़ जाते हैं और बिना मेरे कुछ कहे भविष्यवाणी करने लगते हैं। यदि वे मेरी शिक्षा में स्थिर रहते तो मेरी प्रजा के लोगों को मेरे वचन सुनते; और वे अपनी बुरी चाल और कामों से फिर जाते। (धर्मशास्त्र, यिर्मियह २३:२१-२२) वर्तमान युग में भ्रष्ट आचरण, कुकर्म एवं पाप कर्म में लिप्त रहने वाले मनुष्य गुरु बन कर गुरु पद पर आसीन हो गए हैं और गुरु जैसे पवित्र नाम को, पवित्र गरिमा को अपमानित कर रहे हैं। परमेश्वर ने कहा कि कोई ऐसे गुप्त स्थानों में छिप सकता है जिसको मैं न देख सकूँ ? भविष्यवक्ता की बातें भी मैंने सुना है जो मेरे नाम से यह कहकर झूठी भविष्यवाणी करते हैं और अपने मन ही के छल के भविष्यवक्ता हैं; यह बात कब तक उनके मन में समाई रहेगी। ये भविष्यवक्ता स्वप्न बता कर मनुष्य को मेरा नाम भूलाना चाहते हैं। (धर्मशास्त्र, यिर्मियह २३:२४ -२७) परमेश्वर ने कहा कि जो बिना मेरे भेजे या बिना मेरी आज्ञा पाये स्वप्न देखने का झूठा दावा करके भविष्यवाणी करते हैं, और उसका वर्णन करके मेरी प्रजा को झूठे घमण्ड में आकर भरमाते हैं, मैं उनके विरुद्ध हूँ। (धर्मशास्त्र, यिर्मियह २३:३२) उन्होंने वैसे व्यक्ति के लिए चेतावनी देते हुए यह कहा कि मैं उसको घराने समेत दंड दूंगा। (धर्मशास्त्र, यिर्मियह २३:३४) पवित्र कुरान में, सूरः जुमर ३९ के आयत २७, ३०-३१, पेज नं ७३३ में परमेश्वर ने अपने पैगंबर को भेज कर ऐसे लोगों को चेतवनी देने के क्रम में धर्मशास्त्र में यह लिखवाया कि तुम भी मर जाओगे और तुम्हारा शिष्य (Followers) भी मर जाएँगे; फिर तुम सब कियामत के दिन अपने परवरदिगार के सामने झगड़ोगे, और झगड़े का फैसला कर दिया जाएगा।
तो अब सवाल यह उठता है कि कलि के इस कलिकाल में मनुष्य को ब्रह्म-ज्ञान कौन देगा ? परमेश्वर ने मनुष्य के प्रश्नों का जबाब देने के लिए अपने खास पैगंबर को भेज कर धर्मशास्त्र में लिखवाया और कहा कि इस काम के लिए मैं अपने पुत्र को धरती पर भेजूंगा। उसकी पहचान कैसे होगी ? वह व्यक्ति अपने को गुरु नहीं बल्कि ईश्वर पुत्र कहेगा। परमेश्वर ने अपने पुत्र को आदेश दिया कि स्वर्ग और पृथ्वी का सारा अधिकार तुझे दिया गया है। इसलिए तुम पृथ्वी पर जाकर सब जातियों के लोगों को शिष्य बनाओ। उन्हें पिता, पुत्र और पवित्रात्मा के नाम से दीक्षा दो। उन्हें उन सब बातों को मानना सिखाओ जिसकी आज्ञा मैंने तुम्हें दी है। देखो, मैं जगत के अंत तक सदैव तुम्हारे संग हूँ। (धर्मशास्त्र, मत्ती २८:१८-२०)
कलि के इस कलिकाल में मनुष्य को ब्रह्म-ज्ञान देने के लिए इस धरती पर ईश्वर पुत्र आया और उन्होंने स्वयं को तो गुरु नहीं कहा परन्तु गुरु का कार्य - भार १४ अक्टूवर १९८९ से अपने कन्धों पर संभाला। उन्होंने लोगों से कहा कि पहले जानो कि गुरु कौन है? गुरु किसको कहते हैं ? और गुरु होने के लिए उसमें कौन - कौन सा गुण (Quality) होना चाहिए ? क्योंकि संसार में बहकाने वाले और ठगने वाले बहुत से लोग पैदा हो गए हैं। मैं आपको इसलिए को सावधान करता हूँ ताकि तुम उस झूठे गुरु के बहकावे में न आजाओ।
उन्होंने गुरु के संबंध में कहा कि गुरु का शाब्दिक विश्लेषण करने से "गु" और "रु " दो अक्षर प्राप्त होता है। "गु" का अर्थ होता है गुण से अतीत अर्थात गुण से पहले की अवस्था । "रु " का अर्थ होता है रूप से अतीत अर्थात शरीर के पहले की अवस्था। तो गुरु किसको कहते हैं ? जो प्रकृति के गुण से अलग करके प्रकृति के गुण से पहले की अवस्था में ले जाय और रूप व् शरीर से अलग करके रूप व् शरीर से पहले की अवस्था में ले जाय और आत्मा से मिला दे तो उसको गुरु कहते हैं।
संसार के प्रत्येक चीजों की उत्पत्ति प्रकृति के तीन गुणों से मिलकर हुई है। तमो गुण व् तामस गुण से शरीर बना। रजो गुण व् राजस गुण से मन और दस इन्द्रियाँ बनी। सत्व गुण व् सात्विक गुण से बुद्धि बना । जो व्यक्ति मनुष्य को सत्व, रज और तम गुण से अलग करने का काम करे, जो रूप व् शरीर से अलग करने का काम करे, जो मन एवं दसों इन्द्रियों से अलग करने का काम करे और बुद्धि से भी अलग कर आत्मा से मिला दे तो उसे गुरु कहते हैं।
शरीर से परे दस इन्द्रियाँ है, दस इन्द्रियाँ से परे मन है, मन से परे बुद्धि है और बुद्धि से परे आत्मा है। जो व्यक्ति व्यवहार में (प्राक्टिकल में) शरीर से बलवान दस इन्द्रियाँ है, इसलिए दस इन्द्रियाँ से शरीर को वश में करना सिखा दे। दस इन्द्रियाँ से बलवान मन है, इसलिए मन से दस इन्द्रियाँ को वश में करना सिखा दे। मन से बलवान बुद्धि है, इसलिए बुद्धि से मन को वश में करना सिखा दे। बुद्धि से बलवान आत्मा है, इसलिए आत्मा से बुद्धि को वश में करना सिखा दे; तो वही व्यक्ति गुरु है।
जब आप रूप व् शरीर से अतीत की अवस्था में चले जाएंगे, जब आप तीनों गुणों से बाहर निकल कर तीनों गुणों से अतीत की अवस्था में चले जाएंगे तो आप आत्मा के पास पहुँच जाएंगे और आत्मा का अनुभव कर सकेंगे। लेकिन जिस प्रकार धूएँ से अग्नि और धूल से दर्पण ढ़क जाता है ठीक उसी प्रकार कामना के द्वारा मनुष्य का ज्ञान भी ढ़क जाता है। इसलिए यदि कामना नष्ट हो जाय तो ज्ञान प्रकट हो जाएगा। आप जानते हैं कि ज्ञान का फल क्या है ? ज्ञान का फल है समस्त कर्मों का भलीभांति नाश हो जाना। जब समस्त कर्मों का भलीभांति नाश होजाएगा तो आपका आवागमन मिट जाएगा। इसलिए यदि आप अपने कामनाओं को सम्पूर्ण रूप से नाश कर देने में सफल हो जाते हैं तो आपको जीते - जीते मुक्ति मिल जायेगी। इस बात को हर हमेशा याद रखना है कि जिस प्रकार प्रज्वलित अग्नि ईंधनों को भष्म कर देता है ठीक उसी प्रकार ज्ञान रूप अग्नि समस्त कर्मों को नष्ट कर देता है।
ज्ञानों में उत्तम ज्ञान ब्रह्म-ज्ञान है। इस ज्ञान को जानने के बाद कोई भी ज्ञान जानने के लिए शेष नहीं रह जाता है। ब्रह्म ज्ञान सब विद्याओं का राजा, सब गोपनियों का राजा, अति पवित्र, अति उत्तम, प्रत्यक्ष फल वाला, धर्म युक्त, साधन करने में बड़ा सुगम और अविनाशी है।
ब्रह्म ज्ञान का फल जन्म - मरण से छूट कर परमेश्वर को प्राप्त हो जाना है। ब्रह्म ज्ञान के आलावा परमपद व् मोक्ष की प्राप्ति के लिए दूसरा कोई मार्ग या उपाय नहीं है। तो गुरु कौन है जो आपको परमपद व् मोक्ष की प्राप्ति करा दे ? इसके लिए आपको केवल ब्रह्मज्ञानी गुरु को ही तलास करना चाहिए।
अब सवाल यह उठता है कि ब्रह्मज्ञानी गुरु कौन हैं ? जो व्यक्ति वेदों के ज्ञान को रखता हो, जो कम से कम शब्द ब्रह्म के भेद को जनता हो, जो सूरत - शब्द योग को जानता हो, जो प्रैक्टिकल करके पूर्ण ब्रह्म तक गया हो, जो छल - प्रपंच से दूर हो, जो प्रैक्टिकल करके पूर्ण ब्रह्म तक जाने का अभ्यास करवा दे और धन में उसकी विशेष रूचि न हो। आप ऐसे ब्रह्म ज्ञानी के पास जाकर उस ज्ञान को अच्छी प्रकार से समझिये। उनको भली - भाँति दण्डवत प्रणाम करने से, उनकी सेवा करने से और कपट छोड़कर सरलता पूर्वक प्रश्न करने से वे परमात्म तत्व को जानने वाले ब्रह्मज्ञानी महात्मा तुमको उस ज्ञान का उपदेश करेंगे जिसको जान कर तू सम्पूर्ण भूतों को पहले अपने अन्दर में और बाद में पूर्ण ब्रह्म में देखोगे।
गुरु का स्थान परमेश्वर से भी ऊंचा है क्योंकि गुरु मुक्ति दिलाता है और परमेश्वर श्रेष्ट कर्म में लगता है। इसलिए गुरु का स्थान परमेश्वर से भी ऊंचा है। कबीर दास जी ने कहा है कि यदि ऐसा उपरोक्त गुण वाला गुरु शीश देने पर भी मिल जाय तो समझो कि सौदा सस्ते में पट गया।